वास्तु की दिशाएं बदलेंगी आपकी किस्मत-
आज हम वास्तु से संबंधित वास्तु की प्रमुख आठों दिशाओं के सही वास्तु के विषय में बात करेंगे। वास्तु शास्त्र में दिशाओं का विशेष महत्व है। हर चीज को घर और ऑफिस में दिशा के हिसाब से रखने से ही सकारात्मक ऊर्जा का संचार बना रहता है। वास्तु की इन आठों दिशाओं पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण दिशा के साथ ही घर और ऑफिस के ब्रह्म स्थान के वास्तु का भी जीवन में विशेष प्रभाव रहता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार कोई भी दिशा पूर्णतः अशुभ नहीं होती है और दिशाओं का जीवन पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही तरीके से प्रभाव पड़ता है। आइए वास्तु की इन सभी दिशाओं के विषय में जानते हैं।
● पूर्व दिशा- पूर्व दिशा के स्वामी ग्रह सूर्य है और इसे देवताओं की दिशा माना जाता है। इस दिशा में पूजा-पाठ करने से सुख, समृद्धि आती है। शिक्षा से जुड़े कार्यों को करने के लिए यह दिशा बेहद शुभ मानी जाती है। विद्यार्थियों को इस दिशा में सोना और पढ़ना उपयुक्त रहता है। पॉजिटिव एनर्जी के लिए पूर्व दिशा में घर का दरवाजा या खिड़की होनी चाहिए। पूर्व दिशा को हल्का एवं साफ सुथरा बनाकर रखें। पूर्व दिशा के दूषित होने पर पिता से विरोध, सरकार और सरकारी नौकरी में परेशानी, मानसिक दुर्बलता, सिर दर्द, नेत्र और हृदयरोग के साथ ही प्रमोशन आदि में परेशानी की संभावना बनी रहती है। पूर्व दिशा को बंद करने या फिर दक्षिण-पश्चिम दिशा से अधिक ऊंचा करने से कई बार मान सम्मान को हानि, कर्जे का बने रहना आदि परेशानियां भी देखने को मिल सकती है। यहां सीढ़ियां नहीं बनानी चाहिए। पूर्व दिशा को जागृत करने के लिए घर या ऑफिस की पूर्व दिशा में सूर्य का हस्त निर्मित वैदिक यंत्र अवश्य लगाना चाहिए।
● पश्चिम दिशा- पश्चिम दिशा का स्वामी शनि ग्रह है। पश्चिम दिशा में दोष होने पर सरकारी नौकरी और राजनैतिक क्षेत्र में परेशानी, वायु विकार, लकवा, रीड की हड्डी में दर्द, कैंसर, मिर्गी, पैरों की तकलीफ और नपुंसकता आदि की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इस दिशा में प्रबल वास्तु दोष होने से अधिक खर्चे, आय में अक्सर रुकावट, गृहस्थ जीवन के साथ ही व्यापारिक संबंधों में भी परेशानी बनी रहती है। पश्चिम दिशा रसायनिक काम, सुपरमार्केट, गैराज और मैकेनिक की शॉप के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इस दिशा में भारी सामान और भारी निर्माण किया जा सकता है। पश्चिम दिशा को जागृत करने के लिए आपको अपने घर या ऑफिस की पश्चिम दीवाल पर शनि का हस्तनिर्मित वैदिक यंत्र स्थापित करना चाहिए।
● उत्तर दिशा- उत्तर दिशा का स्वामी बुध ग्रह है। इस दिशा के देवता धन के स्वामी कुबेर है और यह जलीय तत्व की दिशा है। उत्तर दिशा में वास्तु दोष होने से विद्या, बुद्धि और याददाश्त में कमी, मिर्गी, उन्माद के साथ ही वाणी दोष, मतिभ्रम, उच्च शिक्षा में रुकावट, व्यवसाय में हानि, व्यर्थ के खर्चे और आर्थिक परेशानी, शंकालु स्वभाव, माता के स्वास्थ्य में भी गिरावट देखने को मिल सकती है। उत्तर दिशा में घर के खिड़की, दरवाजे, बालकनी, दीवाल घड़ी और मुख्य द्वार का होना शुभ माना जाता है। उत्तर दिशा को हल्का और साफ बना के रखना चाहिए साथ ही उत्तर दिशा को जागृत करने के लिए घर और ऑफिस की उत्तर दिशा की दीवाल पर बुध का हस्तनिर्मित वैदिक यंत्र अवश्य स्थापित करना चाहिए।
● दक्षिण दिशा - दक्षिण दिशा का स्वामी ग्रह मंगल है और इसे यम की दिशा भी कहा जाता है। यह अग्नि तत्व की दिशा भी है। इस दिशा में दरवाजे, खिड़कियां या बहुत ज्यादा खुला रखने पर शारीरिक कष्ट, रोग और मानसिक परेशानियां हो सकती हैं। दक्षिण दिशा में प्रबल वास्तु दोष होने से गृह स्वामी को कष्ट, भाइयों में कटुता, रक्तचाप, फोड़े-फुंसी, क्रोध की अधिकता और दुर्घटनाओं की संभावनाएं भी बढ़ जाती है। दक्षिण दिशा में भारी सामान, बड़े पेड़, कारखाने, बिजली और आग से संबंधित व्यवसाय और कार्यों के लिए उपयुक्त मानी जाती है। दक्षिण दिशा कुंडली का दशम घर है और मंगल के पराक्रम वाली दिशा है। इस दिशा में किराना स्टोर, होटल, रेस्टोरेंट आदि का व्यवसाय काफी अच्छा चलते हुए देखा गया है। दक्षिण दिशा को जागृत करने के लिए आपको अपने घर और ऑफिस में मंगल ग्रह का हस्त निर्मित वैदिक यंत्र अवश्य स्थापित करना चाहिए।
● ईशान दिशा- घर के उत्तर- पूर्व के कोण को ईशान दिशा कहते हैं। इस दिशा के स्वामी बृहस्पति और इस दिशा में जल व भगवान शिव का भी स्थान है। ईशान कोण में बोरिंग, स्विमिंग पूल, पूजा स्थल, मटका रखना, वाटर टैंक और घर का मुख्य द्वार शुभ माना जाता है। ईशान दिशा के दूषित होने पर पूजा- पाठ, देवता, गुरु और बड़ों के प्रति आस्था में कमी, आय के साथ ही संचित धन में कमी, विवाह में देरी, उदर विकार, कब्ज, अनिद्रा आदि की संभावना बनी रहती है। ईशान कोण में अधिक दोष होने से व्यक्ति में संघर्ष की कमी, अस्त-व्यस्त जीवन एवं मानसिक अस्थिरता के साथ ही बुद्धि भ्रमित होने का भी अंदेशा बना रहता है। विवाह के काफी समय बाद भी संतानोत्पत्ति में परेशानी या फिर देरी होती रहती है। इसके साथ ही घर में पुरुष संतान की संख्या भी कम हो सकती है। ईशान दिशा को जागृत करने के लिए घर या ऑफिस के ईशान कोण में ईशान यंत्र अथवा गुरु का हस्तनिर्मित वैदिक यंत्र अवश्य स्थापित करना चाहिए।
● वायव्य विदिशा- घर के उत्तर- पश्चिम कोण को वायव्य कहा जाता है। इसका तत्व वायु और स्वामी ग्रह चंद्रमा है। वायव्य दिशा में खिड़की, रोशनदान, बेडरूम, गैराज, गौशाला और किचन को भी बनाया जा सकता है। इस दिशा को साफ बनाकर रखें। वायव्य दिशा दूषित होने पर माता से संबंधों में कटुता, अनिद्रा, शत्रु भय, मानसिक परेशानियां आक्रामकता, स्त्रियों को मासिक धर्म संबंधी परेशानियां, पथरी, अस्थिरता और बेचैनी की संभावना बनी रहती है। इस दिशा को जागृत करने के लिए घर या ऑफिस के वायव्य कोण में वायव्य दोष निवारक यंत्र अथवा हस्तनिर्मित चंद्र यंत्र की अवश्य स्थापना करनी चाहिए।
● आग्नेय दिशा- घर के दक्षिण- पूर्व कोण को आग्नेय दिशा के नाम से जाना जाता है। इस दिशा का स्वामी ग्रह शुक्र एवं इसका तत्व अग्नि है। इस दिशा में रसोईघर, गैस, ट्रांसफार्मर, कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक आदि उपकरण को रखना चाहिए। आग्नेय कोण के दूषित होने पर स्त्री सुख में कमी, वाहन से कष्ट, नशे की आदत, श्रंगार के प्रति अरुचि, हर्निया, आग लगने का भय, मधुमेह, धातु एवं मूत्र संबंधी रोग के साथ ही पुरुषों की अपनी कमी से संतानोत्पत्ति में बाधा की संभावना भी बनीती है। आग्नेय दिशा को जागृत करने के लिए अपने घर या ऑफिस के अग्नि कोण में आग्नेय यंत्र अथवा शुक्र का हस्त निर्मित यंत्र अवश्य लगाना चाहिए।
● नैऋत्य दिशा- घर का दक्षिण- पश्चिम कोण नैऋत्य कहा जाता है। नैऋत्य दिशा का स्वामी ग्रह राहु और इसका तत्व पृथ्वी है। नैऋत्य दिशा में घर के मुखिया का कमरा, अलमारी, सोफा, कैश काउंटर, मशीन, बड़े पेड़, भारी सामान, ऊंची दीवार और सीढियों को उपयुक्त माना गया है। यहां बोर, कुआं, सेप्टिक टैंक, गहरा गड्ढा आदि नहीं होना चाहिए। नैऋत्य दिशा के दूषित होने पर परिवार में आकस्मिक दुर्घटना, मृत्यु, भय, त्वचा और रक्त विकार, मानसिक परेशानियां एवं चरित्र पर लांछन लगने की संभावना बनी रहती है। नैऋत्य दिशा को ऊंचा और भारी रखना चाहिए। नैऋत्य कोंण को व्यवस्थित रखने के लिए घर या ऑफिस के नैऋत्य कोण में हस्त निर्मित वैदिक नैऋत्य यंत्र अथवा राहु का यंत्र अवश्य स्थापित करना चाहिए।
● ब्रह्म स्थान- घर के केंद्र या नाभि भाग को ब्रह्मस्थान कहा जाता है। घर या ऑफिस के ब्रह्म स्थान को साफ और हल्का बनाकर रखना चाहिए। ब्रह्मस्थान के दूषित होने पर जीवन में कष्ट, बाधा, तनाव, कलह, सकारात्मक ऊर्जा में कमी, पेट एवं हृदय रोग की प्रबल संभावना बनती है। ब्रह्मस्थान में बहुत भारी सामान रखने या कोई भारी निर्माण करने, गहरा गड्ढा या टैंक आदि होने पर जीवन में कई सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ब्रह्मस्थान में दोष होने पर घर या ऑफिस में हस्त निर्मित संपूर्ण वास्तु यंत्र के साथ ही गोमती चक्र से बने स्वास्तिक का अवश्य प्रयोग करना चाहिए।
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डॉ योगेश व्यास, मानसरोवर- जयपुर।
ज्योतिषाचार्य, टापर,
नेट ( साहित्य एवं ज्योतिष ),
पीएच.डी(ज्योतिषशास्त्र) ।।
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