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कुंडली में विवाह और मधुर दांपत्य के योग
शादी व्यक्ति के जीवन का एक अहम मुद्दा होता है और हर व्यक्ति चाहता है कि एक सुंदर और सुलझे हुए जीवन साथी के साथ में उसका मधुर दांपत्य जीवन व्यतीत हो। तो आज हम विवाह जैसे बेहद इंपॉर्टेंट टॉपिक पर कुंडली में विवाह के योग, मधुर दांपत्य के योग और आपका जीवन साथी कैसा होगा के योगों के बारे में ज्योतिष के नजरिए से बात करेंगे !
बात करते हैं कुंडली में “ प्रेम विवाह के योगों ” की तो पुरुष की कुंडली में शुक्र ग्रह प्रेम वा शादी का कारक ग्रह होता है तो स्त्री की कुंडली में मंगल और गुरु ग्रह प्रेम व शादी के कारक ग्रह होते हैं।
● कुंडली में जब लग्नेश, पंचमेश, सप्तमेश और नवमेश का किसी भी प्रकार से परस्पर संबंध हो रहा हो तो जातक का प्रेम- उसके विवाह में परिणत होता है।
● ऐसे ही यदि लग्न कुंडली में प्रेम विवाह के योग आंशिक हैं और नवांश कुंडली में पंचमेश, सप्तमेश और नवमेश की युति हो रही है तो प्रेम विवाह की संभावनाएं काफी प्रबल हो जाती हैं। ● इसी प्रकार से चंद्रमा तथा शुक्र का लग्न या सप्तम भाव में होना भी प्रेम विवाह की ओर संकेत करता है इसलिए, पूजा घर में हस्तनिर्मित चंद्रमा और शुक्र के वैदिक यंत्र की स्थापना वैवाहिक सुख प्रदान करती है!
● जब शुक्र के साथ राहु की युति हो और इन पर शनि की भी पूर्ण दृष्टि हो तो ऐसा योग कई बार अंतर्जातीय प्रेम विवाह भी करा देता है !
बात करते हैं “ मधुर वैवाहिक जीवन के योगों की ” तो दांपत्य सुख प्राप्ति के लिए सप्तम भाव का विशेष महत्व है।
● जब सप्तम भाव और सप्तमेश पर पाप ग्रहों का प्रभाव ना होकर शुभ ग्रहों का प्रभाव होगा और सप्तमेश भी अशुभ भाव यानि 6, 8, 12वें भाव में पाप ग्रहों से युक्त नहीं होगा, तो व्यक्ति को सुखद दांपत्य जीवन की प्राप्ति अवश्य होगी।
● कुंडली में शुक्र, गुरु और चंद्रमा की मजबूत स्थिति होने पर भी उत्तम वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है।
● कुंडली में सप्तमेश की नवमेश के साथ युति किसी भी केंद्र में हो और बुध, गुरु या शुक्र में से कोई एक या अधिक ग्रह उच्च के हों तो भी दांपत्य जीवन बेहद मधुर होता है।
● इसी प्रकार से द्वादश भाव एवं द्वादशेश पर किसी भी प्रकार के पाप ग्रहों का प्रभाव ना होकर शुभ ग्रहों का प्रभाव होगा तो भी व्यक्ति को दांपत्य और शैय्या सुख की अवश्य ही प्राप्ति होती है।
● ऐसे ही द्वितीय भाव और द्वितीयेश पर पाप ग्रहों का प्रभाव ना होकर यदि शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो भी दंपत्ति को वैवाहिक सुख के साथ ही पारिवारिक सुख की भी प्राप्ति होती है।
बात करते हैं कि ”जीवन साथी कैसा होगा” तो कुंडली का सातवां घर शादी का होता है।
● यदि गुरु से सातवें घर में शुक्र बैठा है तो भी आपको सुंदर पत्नी प्राप्त होगी।
● यदि पाप ग्रह से रहित सप्तमेश को शुक्र ग्रह देख रहा हो तो भी आपकी पत्नी सुंदर होगी।
● जब पाप ग्रहों से रहित गुरु ग्रह सप्तम भाव में बैठता है तब भी जातक को सुंदर व सात्विक जीवन साथी की प्राप्ति होती है।
● जब लग्न में स्थित बली शुक्र सप्तम भाव में स्थित पाप ग्रहों से रहित चंद्रमा को देखता है तब भी व्यक्ति को सुंदर पत्नी की प्राप्ति होती है।
● ऐसे ही कुंडली में अगर शुक्र सप्तम भाव में तुला, वृष या कर्क राशि में स्थित हो तब भी व्यक्ति की पत्नी श्वेत वर्ण एवं आकर्षक नयन, नक्श वाली होती है।
● इसी प्रकार से स्त्री की बात करें तो यदि स्त्री की कुंडली में बुध और शुक्र लग्न में हों तो वह कमनीय देह वाली कला युक्त, बुद्धिमती और पति प्रिया होती है।
* दंपत्ति के द्वारा आपसी प्रेम को बढ़ाने के लिए अपने पूजा घर में हस्तनिर्मित गुरु व शुक्र के वैदिक यंत्र की स्थापना बेहद शुभ परिणाम देती है।
* चंद्रमा वैवाहिक सुख प्रदान करने वाला ग्रह है इसलिए चंद्र के वैदिक यंत्र की स्थापना भी उत्तम वैवाहिक सुख प्रदान करती है।
* घर के वास्तु दोषों को कम करने के लिए हस्त निर्मित संपूर्ण वास्तु यंत्र को पूजा घर में लगाने पर आपसी प्रेम व वैवाहिक सुख में वृद्धि होती है।
* ऐसे ही दंपत्ति द्वारा अपने बेडरूम में सकारात्मक ऊर्जा के निरंतर प्रवाह के लिए रत्न जड़ित स्फटिक पॉजिटिव एनर्जी टावर की स्थापना करने पर आपसी प्रेम व सामंजस्य में वृद्धि देखने को मिलती है। इन सभी उपयोगी यंत्रों की डिटेल आपको वीडियो के नीचे मिल जाएगी।
● जन्मकुंडली और वास्तु शास्त्र से संबंधित समस्याओं के समाधान के लिए आप हमसे ऑनलाइन हमारी वेबसाइट एस्ट्रोलॉजर योगेश डॉट कॉम के माध्यम से भी संपर्क कर सकते हैं।
डॉ योगेश व्यास, ज्योतिषाचार्य टापर,
नेट ( साहित्य एवं ज्योतिष ),
पीएच.डी(ज्योतिषशास्त्र)
जयपुर।
https://www.astrologeryogesh.com/
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