कुंडली में केंद्रस्थ ग्रह और व्यक्तित्व
ज्योतिष के अनुसार कुंडली में व्यक्ति का भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों समाहित हैं। हमारी कुंडली में 12 घर,12 राशियां
और 9 ग्रह होते हैं ! वैदिक ज्योतिष के अनुसार हमारे जीवन की हर छोटी से छोटी घटना इन 12 घरों, 12 राशियों और 9
ग्रहों से जुड़ी होती हैं ! प्रत्येक व्यक्ति की यह इच्छा रहती है कि असका जीवन सुखपूर्ण रहे, उसे जिंदगी में कभी किसी चीज
की कमी न रहे ! किसी को तो यह सुविधा जन्मजात ही नसीब होती है, किसी को मेहनत से प्राप्त होती है और किसी को प्राप्त
ही नही होती हैं ! यह सब व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की स्थिति सुनिश्चित करती है !
कुंडली में केंद्र स्थान किसी भी व्यक्ति के जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव डालता है ! कुंडली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम एवं दशम
भाव को केंद्र भाव माना गया है ! सामान्यत: यदि इन चारों भाव में कोई शुभ ग्रह हो तो व्यक्ति धनवान होता है, वहीं केंद्र में
उच्च के पाप ग्रह बैठे हो तो व्यक्ति बहुत धनवान होने पर भी गरीब हो सकता है, अगर केंद्र में कोई ग्रह न हो तो ऐसी कुंडली
को शुभ नहीं माना जाता है ! ऐसा व्यक्ति जीवन में अक्सर परेशान रहते हुए देखा गया है। आइये जानते हैं कि कुंडली के केंद्र
भाव में स्थित ग्रहों के माध्यम से व्यक्ति के व्यक्तित्व पर कौन सा प्रभाव ज्यादा होने की संभावना बनती है।
कुंडली के केंद्र भाव में ग्रह—
● सूर्य के केंद्र में होने से व्यक्ति सरकारी नौकरी में जाने की संभावना ज्यादा बनती है !
● चंद्रमा के केंद्र में होने से व्यक्ति के व्यापार करने की संभावना ज्यादा बनती है।
● मंगल केंद्र में हो तो व्यक्ति सेना या फिर पुलिस की नौकरी करने का ज्यादा इच्छुक होता है।
● बुध के केंद्र में होने से व्यक्ति अध्यापक की नौकरी, कंप्यूटर का कार्य या व्यवसाय का भी इच्छुक होता है।
● गुरु के केंद्र में होने से व्यक्ति ज्ञानी एवं धर्मकर्म के कार्य करने में रुचि रखता है।
● शुक्र के केंद्र में होने पर व्यक्ति धनवान तथा विद्यावान और उसका व्यवसाय में भी रुझान होता है।
● शनि के केंद्र में होने से व्यक्ति लोगों की सेवा करने वाला और उसका नौकरी, राजनीति एवं व्यवसाय में भी झुकाव होता
है।
● NOTE- यह योग केंद्र स्थित ग्रहों की सामान्य जानकारी प्रस्तुत करते हैं ! उक्त योगो को कुंडली के अन्य ग्रह भी प्रभावित
करते है, इसलिए फलादेश के समय ग्रहों की अवस्था, युतियां और अन्य ग्रहों की दृष्टि का समावेश करना भी आवश्यक होता
है।
● वैवाहिक जीवन में ख़ुशी या तनाव के कुछ योग - ज्योतिष में बताया है कि व्यक्ति का स्वभाव उसकी कुण्डली में मौजूद ग्रहों
की कुछ खास स्थितियों के कारण होता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिस व्यक्ति की कुण्डली में शनि और शुक्र एक साथ एक
घर में होते हैं, उनके वैवाहिक जीवन में कलह की संभावना रहती है ! घर में तनाव का कारण शुक्र व शनि की युति भी हो
सकती है ! इसका कारण यह है कि व्यक्ति का दूसरी स्त्रियों में रुझान रहता है ! यह शुक्र व शनि की युति का सामान्य नियम
है ! यहां कुंडली में सप्तम भाव और सप्तमेश की स्थिति को देखना भी आवश्यक होता है।
● शुक्र अगर मंगल की राशि में बैठा हो या फिर मंगल और शुक्र की केंद्र या त्रिकोण भाव में युति हो रही हो तब ऐसे व्यक्ति
की अन्य स्त्री से भी निकटता की संभावना बनती है। इसके कारण भी कुछ तनाव हो सकता है। यह शुक्र व मंगल की युति का
सामान्य नियम है ! कुंडली के अन्य शुभ या अशुभ योग परिणाम के प्रतिशत को घटा या बढा सकते हैं !
● बली शुक्र की भूमिका- ज्योतिष में शुक्र को शुभ ग्रह माना गया है ! ग्रह मंडल में शुक्र को मंत्री पद प्राप्त है, यदि कुंडली में
शुक्र ग्रह शुभ प्रभाव देने वाला होता है तो व्यक्ति को अपने पूरे जीवन में हर भौतिक सुख की प्राप्ति होती है ! शुक्र के विशेष
प्रभाव से वह जीवनभर सुखी रहता है !
● कुंडली में सशक्त शुक्र - कुंडली में शुक्र भौतिक सुख का कारक है ! शुक्र लग्र,द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, नवम, दशम, एकादश
और द्वादश भाव में स्थित हो तो धन, सम्पत्ति और सुखों के लिए अत्यंत शुभ फलदायक है ! सशक्त शुक्र अष्टम भाव में भी
अच्छा फल प्रदान करता है ! चतुर्थ स्थान में शुक्र बलवान होता है, यदि कुंडली में कुछ अशुभ ग्रह केंद्र में स्थित हो तो ऐसी
स्थिति में भी शुक्र व्यक्ति को सुखपूर्ण जीवन देने में सक्षम होता है।
● सप्तम भाव में शुक्र की स्थिति विवाह के बाद भाग्योदय की सूचक है परंतु, शुक्र पर मंगल का प्रभाव नही होना चाहिए
अन्यथा, ऐसा शुक्र जातक के जीवन को अनैतिक बना सकता है !
● इसी प्रकार से व्यक्ति की कुंडली में शुक्र के ऊपर शनि के प्रभाव के कारण उनके वैवाहिक जीवन में उत्साह और उमंग में
थोड़ी कमी देखने को मिल सकती है।
● पुरुष की कुंडली में शुक्र ग्रह वैवाहिक सुख का कारक होता है और महिलाओं की कुंडली में गुरु ग्रह वैवाहिक सुख का एक
प्रबल कारक ग्रह माना जाता है, इसलिए वैवाहिक सुख की प्राप्ति के लिए पुरुष को शुक्र ग्रह का एवं कन्या को गुरु ग्रह का हस्त
निर्मित वैदिक यंत्र अपने पूजा घर में अवश्य स्थापित करना चाहिए।
■ मनुष्य अपने भाग्य को तो बदल नहीं सकता परन्तु जाप या रत्न धारण करने से सफलता तक अवश्य पहुँचा सकता है।
■ ज्योतिष फलदायक न होकर फल सूचक है ! किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले किसी योग्य ज्योतिर्विद से संपूर्ण
कुंडली के परामर्श करने के बाद ही किसी सार्थक निर्णय पर पहुंचना उचित माना जाता है।
Website- www.astrologeryogesh.com
डॉ योगेश व्यास, ज्योतिषाचार्य (टॉपर),
नेट (साहित्य एवं ज्योतिष), पीएच.डी (ज्योतिषशास्त्र)
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