Contact Me

Dr. Yogesh Vyas

Mobile: +91 8696743637, 918058169959
Email: aacharyayogesh@gmail.com

Types Of Services Provided By Dr. Yogesh Vyas in Jaipur, Rajsthan

1. Astrology for business
2. Love marriage problem solution astrology
3. Astrology Services for marriage
4. Financial Services Astrology
5. Problems in marriage astrology
6. Husband-wife problem solution by astrology
7. Career prediction astrology
8. Astrology for job
9. Astrology for health
10. Astrology for education
11. Financial problem Astrology Solution
12. Vastu Services
13. Jyotish Services
14. Vastu Yantras
15. Jyotish Yantras

मांगलिक दोष (Manglik Dosha)

मंगली दोष का ज्योतिषीय आधार:-
वास्तव में ज्योतिष का अर्थ होता है व्यक्ति को जागरुक/ सचेत करना ! वैदिक ज्योतिष में मंगल को लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में दोष पूर्ण माना जाता है.इन भावो में उपस्थित मंगल वैवाहिक जीवन के लिए अनिष्टकारक कहा गया है.जन्म कुण्डली में इन भावों में मंगल के साथ जितने क्रूर ग्रह बैठे हों मंगल उतना ही दोषपूर्ण होता है जैसे दो क्रूर होने पर दोगुना, चार हों तो चार चार गुणा!. मंगल की स्थिति से रोजी रोजगार एवं कारोबार मे उन्नति एवं प्रगति होती है तो दूसरी ओर इसकी उपस्थिति वैवाहिक जीवन के सुख बाधा डालती है. वैवाहिक जीवन में शनि को विशेष अमंलकारी माना गया है! जन्मकुण्डली के 1,4,7,8, एंव 12वें भाव में मंगल के होने से जातक मांगलिक कहलाते हैं! विवाह के समय कुण्डली मिलान में मांगलिक दोष देखा जाता है! मंगल पापी ग्रह या सदैव हानि करता है ऎसी धारणा है परन्तु मंगल पापी ग्रह न होकर क्रूर स्वभाव वाला ग्रह है!. राजनैतिक गुणो से दूर मंगल सरल स्वभाव वाला ग्रह है. परन्तु यदि कोई मंगल प्रभावित व्यक्ति से छेड्छाड् करता है तो मंगल उसे नीति की बजाए हिंसा से सबक सिखाता है!

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मांगलिक दोष का निर्घारण दो प्रकार से किया जाता है! एक पूर्ण मांगलिक जिसे समग्र मांगलिक कहते हैं और दूसरी चन्द्र मांगलिक! चन्द्र मांगलिक की पहचान कुण्डली में चन्द्र कुण्डली चक्र से किया जाता है. चन्द्र कुण्डली में जहां चन्द्रमा होता है वह लग्न माना जाता है और वहीं से प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव का विचार करके मांगलिक दोष का निर्घारण किया जाता है! मांगलिक दोष जिसे कुजा दोष भी कहते हैं विवाह के विषय में बहुत ही गंभीर और अमंगलकारी मानी जाती है. मांगलिक दोष से पीड़ित लड़का हो या लड़की दोनों की शादी को लेकर माता पिता की परेशानी विशेष रूप से बढ़ जाती है क्योंकि गृहस्थ जीवन के संदर्भ में मांगलिक दोष बहुत सी कष्टदायी और दुखदायी होती है!

लग्न भाव में मंगल-
लग्न भाव से व्यक्ति का शरीर, स्वास्थ्य, व्यक्तित्व का विचार किया जाता है.लग्न भाव में मंगल होने से व्यक्ति उग्र एवं क्रोधी होता है.यह मंगल हठी और आक्रमक भी बनाता है.इस भाव में उपस्थित मंगल की चतुर्थ दृष्टि सुख सुख स्थान पर होने से गृहस्थ सुख में कमी आती है.सप्तम दृष्टि जीवन साथी के स्थान पर होने से पति पत्नी में विरोधाभास एवं दूरी बनी रहती है.अष्टम भाव पर मंगल की पूर्ण दृष्टि जीवनसाथी के लिए संकट कारक होता है!

चतुर्थ भाव में मंगल:-
चतुर्थ स्थान में बैठा मंगल सप्तम, दशम एवं एकादश भाव को देखता है.यह मंगल स्थायी सम्पत्ति देता है परंतु गृहस्थ जीवन को कष्टमय बना देता है.मंगल की दृष्टि जीवनसाथी के गृह में होने से वैचारिक मतभेद बना रहता है.मतभेद एवं आपसी प्रेम का अभाव होने के कारण जीवनसाथी के सुख में कमी लाता है.मंगली दोष के कारण पति पत्नी के बीच दूरियां बढ़ जाती है और दोष निवारण नहीं होने पर अलगाव भी हो सकता है.यह मंगल जीवनसाथी को संकट में नहीं डालता है!

सप्तम भाव में मंगल:-
सप्तम भाव जीवनसाथी का घर होता है.इस भाव में बैठा मंगल वैवाहिक जीवन के लिए सर्वाधिक दोषपूर्ण माना जाता है.इस भाव में मंगली दोष होने से जीवनसाथी के स्वास्थ्य में उतार चढ़ाव बना रहता है.जीवनसाथी उग्र एवं क्रोधी स्वभाव का होता है.यह मंगल लग्न स्थान, धन स्थान एवं कर्म स्थान पर पूर्ण दृष्टि डालता है.मंगल की दृष्टि के कारण आर्थिक संकट, व्यवसाय एवं रोजगार में हानि एवं दुर्घटना की संभावना बनती है.यह मंगल चारित्रिक दोष उत्पन्न करता है एवं विवाहेत्तर सम्बन्ध भी बनाता है.संतान के संदर्भ में भी यह कष्टकारी होता है.मंगल के अशुभ प्रभाव के कारण पति पत्नी में दूरियां बढ़ती है जिसके कारण रिश्ते बिखरने लगते हैं.जन्मांग में अगर मंगल इस भाव में मंगली दोष से पीड़ित है तो इसका उपचार कर लेना चाहिए!

अष्टम भाव में मंगल:-
अष्टम स्थान दुख, कष्ट, संकट एवं आयु का घर होता है.इस भाव में मंगल वैवाहिक जीवन के सुख को निगल लेता है.अष्टमस्थ मंगल मानसिक पीड़ा एवं कष्ट प्रदान करने वाला होता है.जीवनसाथी के सुख में बाधक होता है.धन भाव में इसकी दृष्टि होने से धन की हानि और आर्थिक कष्ट होता है.रोग के कारण दाम्पत्य सुख का अभाव होता है.ज्योतिष विधान के अनुसार इस भाव में बैठा अमंलकारी मंगल शुभ ग्रहों को भी शुभत्व देने से रोकता है.इस भाव में मंगल अगर वृष, कन्या अथवा मकर राशि का होता है तो इसकी अशुभता में कुछ कमी आती है.मकर राशि का मंगल होने से यह संतान सम्बन्धी कष्ट देता है।

द्वादश भाव में मंगल-
कुण्डली का द्वादश भाव शैय्या सुख, भोग, निद्रा, यात्रा और व्यय का स्थान होता है.इस भाव में मंगल की उपस्थिति से मंगली दोष लगता है.इस दोष के कारण पति पत्नी के सम्बन्ध में प्रेम व सामंजस्य का अभाव होता है.धन की कमी के कारण पारिवारिक जीवन में परेशानियां आती हैं.व्यक्ति में काम की भावना प्रबल रहती है.अगर ग्रहों का शुभ प्रभाव नहीं हो तो व्यक्ति में चारित्रिक दोष भी हो सकता है..भावावेश में आकर जीवनसाथी को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं.इनमें गुप्त रोग व रक्त सम्बन्धी दोष की भी संभावना रहती है!

मांगलिक दोष का उपचार-
कुण्डली की जांच किसी अच्छे विद्वान ज्योतिषी अथवा पंडित से करवानी चाहिए क्योंकि मांगलिक के भी कई प्रकार हैं और हो सकता है कि आप किसी अन्य प्रकार से मांगलिक हों अथवा जिससे आपकी शादी की बात चल रही है वह भी मांगलिक नहीं हो! कुछ स्थितियों में इसका दोष स्वत: दूर हो जाता है अन्यथा इसका उपचार करके दोष निवारण किया जाता है!

कुछ विशेष उपाय निम्न हैं-
ज्योतिष विधा के अनुसार अगर कुण्डली में चतुर्थ और सप्तम भाव में मंगल मेष अथवा कर्क राशि के साथ योग बनाता है तो मंगली दोष नहीं लगता है, इसी प्रकार द्वादश भाव में मंगल अगर मिथुन, कन्या, तुला या वृष राशि के साथ होता है तब भी यह दोष पीड़ित नहीं करता है! मंगल दोष उस स्थिति में प्रभावहीन होता है जबकि मंगल वक्री हो या फिर नीच या अस्त सप्तम भाव में अथवा लग्न स्थान में गुरू या फिर शुक्र स्वराशि या उच्च राशि में होता है तब मांगलिक दोष वैवाहिक जीवन में बाधक नहीं बनता है! ज्योतिषशास्त्र के नियम के अनुसार अगर सप्तम भाव में स्थित मंगल पर बृहस्पति की दृष्टि हो तो कुण्डली मांगलिक दोष से पीड़ित नहीं होती है .मंगल गुरू की राशि धनु अथवा मीन में हो या राहु के साथ मंगल की युति हो तो व्यक्ति चाहे तो अपनी पसंद के अनुसार किसी से भी विवाह कर सकता है क्योंकि वह मांगलिक दोष से मुक्त होता है.अगर जीवनसाथी में से एक की कुण्डली में मंगल दोष हो और दूसरे की कुण्डली में उसी भाव में पाप ग्रह राहु या शनि स्थित हों तो मंगल दोष कट जाता है.इसी प्रकार का फल उस स्थिति में भी मिलता है जबकि जीवनसाथी में से एक की कुण्डली के तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव में पाप ग्रह राहु, मंगल या शनि मौजूद हों! अगर कुण्डली के प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम एवं द्वादश भाव में से किसी में मंगल मौजूद है और साथ में बृहस्पति या चन्द्रमा है तो मांगलिक दोष को लेकर परेशान नही होना चाहिए.चन्द्रमा अगर केन्द्र स्थान में है तब भी व्यक्ति को मांगलिक दोष से मुक्त समझना चाहिए!

मंगल दोष पर अन्य ग्रहों का प्रभाव-
वर और वधू दोनों की कुण्डली में समान मंगलीक दोष बनता है तो मंगल का कुप्रभाव स्वत: नष्ट हो जाता है. जिस कन्या की कुण्डली में मंगल 1, 2, 4, 7, 8,12 भाव में हो उस कन्या की शादी ऐसे वर से की जाए जिसकी कुण्डली में उसके मंगल के समान भाव में शनि बैठा हो तो मंगल अमंलकारी नहीं होता है. शनि की दृष्टि मंगल पर होने से भी इस दोष का निवारण हो जाता है! चतुर्थ और सप्तम भाव में मंगल मेष, कर्क, वृश्चिक अथवा मकर राशि में हो और उसपर क्रूर ग्रहों की दृष्टि नहीं हो तो मंगलिक दोष का प्रभाव स्वत: ही कम होता है ! मंगल राहु की युति होने से मंगल दोष का निवारण हो जाता है ! ज्योतिषीय विधान के अनुसार लग्न स्थान में बुध व शुक्र की युति होने से इस दोष का परिहार हो जाता है. कर्क और सिंह लग्न में लगनस्थ मंगल अगर केन्द्र व त्रिकोण का स्वामी हो तो यह राजयोग बनाता है जिससे मंगल का अशुभ प्रभाव कम हो जाता है. वर की कुण्डली में मंगल जिस भाव में बैठकर मंगली दोष बनाता हो कन्या की कुण्डली में उसी भाव में सूर्य, शनि अथवा राहु हो तो मंगल दोष का शमन हो जाता है.

मंगल दोष के लिए व्रत और अनुष्ठान-
अगर कुण्डली में मंगल दोष का निवारण ग्रहों के मेल से नहीं होता है तो व्रत और अनुष्ठान द्वारा इसका उपचार करना चाहिए. मंगला गौरी और वट सावित्री का व्रत सौभाग्य प्रदान करने वाला है. अगर जाने अनजाने मंगली कन्या का विवाह इस दोष से रहित वर से होता है तो दोष निवारण हेतु इस व्रत का अनुष्ठान करना लाभदायी होता है. जिस कन्या की कुण्डली में मंगल दोष होता है वह अगर विवाह से पूर्व गुप्त रूप से घट से अथवा पीपल के वृक्ष से विवाह करले फिर मंगल दोष से रहित वर से शादी करे तो दोष नहीं लगता है. प्राण प्रतिष्ठित विष्णु प्रतिमा से विवाह के पश्चात अगर कन्या विवाह करती है तब भी इस दोष का परिहार हो जाता है! मंगलवार के दिन व्रत रखकर सिन्दूर से हनुमान जी की पूजा करने एवं हनुमान चालीसा का पाठ करने से मंगली दोष शांत होता है. कार्तिकेय जी की पूजा से भी इस दोष में लाभ मिलता है! महामृत्युजय मंत्र का जप सर्व बाधा का नाश करने वाला है. इस मंत्र से मंगल ग्रह की शांति करने से भी वैवाहिक जीवन में मंगल दोष का प्रभाव कम होता है. लाल वस्त्र में मसूर दाल, रक्त चंदन, रक्त पुष्प, मिष्टान एवं द्रव्य लपेट कर नदी में प्रवाहित करने से मंगल अमंगल दूर होता है!

यदि वर मंगली है और कन्या मंगली नहीं तो विवाह के समय वर जब वधू के साथ फेरे ले रहा हो तब पहले तुलसी के साथ फेरे ले ले इससे मंगल दोष तुलसी पर चला जाता है और वैवाहिक जीवन में मंगल बाधक नहीं बनता! इसी प्रकार अगर कन्या मंगली है और वर मंगली नहीं है तो फेरे से पूर्व भगवान विष्णु के साथ अथवा केले के पेड़ के साथ कन्या के फेरे लगवा देने चाहिए! जिनकी कुण्डली में मांगलिक दोष है वे अगर 28 वर्ष के पश्चात विवाह करते हैं तब मंगल वैवाहिक जीवन में अपना दुष्प्रभाव नहीं डालता !

* माना जाता है कि अगर किसी जातक की कुंडली में मंगल दोष है तो उसकी शादी मांगलिक से ही करनी चाहिए।
*ऐसा संभव ना होने पर ‘पीपल' विवाह, कुंभ विवाह, सालिगराम विवाह तथा मंगल यंत्र का पूजन आदि कराके जातक की शादी अच्छे ग्रह योगों वाले जातक से करा देनी चाहिए।
* हनुमान चालिसा का पाठ और गणेश पूजन तथा मंगल यंत्र की पूजा करनी चाहिए।

>