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Dr. Yogesh Vyas

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Types Of Services Provided By Dr. Yogesh Vyas in Jaipur, Rajsthan

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शादी में केवल गुण या सम्पूर्ण कुंडली मिलान

जल्दी ही अब शादियों का समय शुरू होने वाला है और हिंदू संस्कृति में विवाह को श्रेष्ठ संस्कार बताया है क्योंकि इसके द्वारा मनुष्य धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष प्राप्त करता है और देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण से मुक्त होता है। वर-वधू का जीवन सुखी बना रहे इसके लिए शादी में सबसे महत्वपूर्ण कार्य कुंडली मिलान का ही होता है। ग्रहों का हमारे जीवन पर काफी प्रभाव देखने को मिलता है इसलिए, जब भी विवाह की बात आती है तो यह जरूरी है कि दोनों कुंडलियों के ग्रह अनुकूल हो जिससे कि, लड़का और लड़की के जीवन में प्रेम, सामंजस्य, सुख, शांति और उन्नति बनी रहे।

कुंडली मिलान में अक्सर गुण मिलान विधि के अनुसार वर-वधू की कुंडलियों में नवग्रहों में से सिर्फ चन्द्रमा की स्थिति ही देखी जाती है तथा बाकी के आठ ग्रहों के बारे में विचार नहीं किया जाता जो व्यवहारिक नहीं है क्योंकि नवग्रहों में से प्रत्येक ग्रह का अपना महत्त्व है तथा किसी भी एक ग्रह के आधार पर इतना महत्त्वपूर्ण निर्णय नहीं लिया जा सकता। इसलिए गुण मिलान की यह विधि पूर्ण विधि नहीं। वर-वधू की जन्म कुंडलियों में चन्द्रमा की स्थिति के आधार पर निम्नलिखित अष्टकूटों का मिलान किया जाता है।
1- वर्ण 2- वश्य 3- तारा 4- योनि 5- ग्रह-मैत्री 6- गण 7- भकूट 8- नाड़ी

इन गुणों का कुल जोड़ 36 बनता है तथा 36 में से जितने अधिक गुण मिलें, उतना ही अच्छा कुंडलियों का मिलान माना जाता है।20 से कम गुण मिलने पर कुंडलियों का मिलान शुभ नहीं माना जाता है !
पहले यह देखना चाहिए कि क्या वर-वधू दोनों की कुंडलियों में सुखमय वैवाहिक जीवन के लक्ष्ण विद्यमान हैं या नहीं ! अगर दोनों में से किसी एक कुंडली मे तलाक या वैध्वय का दोष विद्यमान है जो कि मांगलिक दोष, पित्र दोष या काल सर्प दोष जैसे किसी दोष की उपस्थिति के कारण बनता हो, तो बहुत अधिक संख्या में गुण मिलने के बावज़ूद भी कुंडलियों का मिलान पूरी तरह से अनुचित हो सकता है। इसके पश्चात वर तथा वधू दोनों की कुंडलियों में आयु की स्थिति,आर्थिक सुदृढ़ता, संतान योग, स्वास्थय योग तथा सामंजस्य देखना चाहिए। इसलिए कुंडलियों के मिलान में दोनों कुंडलियों का सम्पूर्ण निरीक्षण करना अनिवार्य है तथा सिर्फ गुण मिलान के आधार पर कुंडलियों का मिलान करने के परिणाम दुष्कर हो सकते हैं। अगर 29-30 गुण मिलने के बाद भी तलाक, मुकद्दमे तथा वैधव्य जैसी परिस्थितियां देखने को मिलती हैं तो इसका मतलब है कि गुण मिलान की प्रचलित विधि सुखी वैवाहिक जीवन बताने के लिए अपने आप में पूर्ण नहीं है ।

कुंडली मिलान में अक्सर नाडी के मिलान को विशेष प्राथमिकता दी जाती है। अगर कुंडली मिलान में नाडी दोष आता है तो अधिक गुण मिलने के बाद भी इसे शादी के लिए शुभ नहीं माना जाता। इसी प्रकार से जब कुंडली मिलान में भकूट दोष और नाडी दोष आ जाता है तो भी कुंडली मिलान श्रेष्ठ नहीं माना जाता।
कुंडली मिलान मे यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल काफी मजबूत है, तो वह बहुत तीव्र उत्साह से भरा हुआ तथा सक्रिय होता है, दूसरी ओर कमजोर मंगल वाला व्यक्ति में यह गुण नहीं होता। इस तरह कमजोर मंगल वाला अपनी साथी की गति तथा तीव्रता के कारण दबाव महसूस कर सकता है। इस तरह से यह जोड़ा अपने आप में पूर्ण नहीं है । इसीलिये कुंडलियों में मांगलिक दोष का परिहार करना आवशयक होता है !
यदि वर-वधू दोनों का जन्म एक ही नक्षत्र के अलग-अलग चरणों में हुआ हो तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष की विशेष परेशानी नहीं होती है। यदि वर-वधू की कुंडलियों में चन्द्रमा परस्पर 6-8, 9-5 या 2-12 राशियों में स्थित हों तो भकूट मिलान के 0 अंक माने जाते हैं तथा इसे भकूट दोष माना जाता है। यदि वर-वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्र राशियों का स्वामी एक ही ग्रह हो तो ऐसी स्थिति में भकूट दोष की विशेष परेशानी नहीं होती है, जैसे कि मेष- वृश्चिक तथा वृष-तुला ! यदि वर-वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्र राशियों के स्वामी आपस में मित्र हैं तो भी ऐसी स्थिति में भकूट दोष की विशेष परेशानी नहीं होती है, जैसे कि मीन-मेष तथा मेष-धनु ! चंद्रमा मन का कारक ग्रह है। इसलिए चंद्र की स्थिति भी प्रेम विवाह में अनुकूलता प्रदान करती है। शुक्र आकर्षण का कारक है। यदि शुक्र जातक के प्रबल होता है तो प्रेम विवाह हो जाता है और यदि शुक्र कमजोर होता है तो सुखी वैवाहिक जीवन बताने के लिए अपने आप में पूर्ण नहीं है । वैवाहिक जीवन की शुभता को बनाये रखने के लिये यह कार्य शुभ समय में करना शुभ रहता है अन्यथा इस परिणय सूत्र की शुभता में कमी होने की संभावनाएं बनती है ! मूल नक्षत्र, आश्लेषा नक्षत्र में जन्म लेने वाली कन्या, ज्येष्ठा मास की कन्या, इसके अलावा विशाखा नक्षत्र में जन्म लेने वाली कन्या का विवाह करने से पहले अपने नक्षत्रों के दोष निवारण करने के बाद ही कन्या का विवाह करना उपयुक्त माना जाता है।
लड़के की कुंडली में शुक्र विवाह का कारक और चंद्रमा वैवाहिक सुख देने वाला ग्रह माना जाता है। इसी प्रकार से लड़की की कुंडली में गुरु ग्रह विवाह का कारक और मंगल ग्रह सुख देने वाला ग्रह माना जाता है तो, लड़के को अपने पूजा घर में गुरु ग्रह का और चंद्र ग्रह का हस्तनिर्मित वैदिक यंत्र स्थापित अवश्य करना चाहिए। इसी प्रकार से लड़की को भी अपने पूजा घर में गुरु ग्रह और मंगल ग्रह का हस्त निर्मित वैदिक यंत्र अवश्य ही स्थापित करके इनकी पूजा करनी चाहिए। इन वैदिक यंत्रों के शुभ प्रभाव से वैवाहिक जीवन में हमेशा मधुरता और सामंजस्य बना रहता है।

■ ज्योतिष फलदायक न होकर फल सूचक है ! किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले किसी योग्य ज्योतिर्विद से संपूर्ण कुंडली के परामर्श करने के बाद ही किसी सार्थक निर्णय पर पहुंचना उचित माना जाता है।

Website- www.astrologeryogesh.com
डॉ योगेश व्यास, ज्योतिषाचार्य (टॉपर),
नेट (साहित्य एवं ज्योतिष), पीएच.डी (ज्योतिषशास्त्र)
Contact for Astrology and Vastu- 8696743637, 8058169959

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