ग्रहों से जानिए व्यवसाय और करियर
जातक के व्यवसाय के लिए उसके दशम भाव से विचार किया जाता है। किसी व्यक्ति को किस कार्य से अथवा
व्यापार या उद्योग के द्वारा जीवन में सफलता प्राप्त इन सभी बातों का विचार दशम भाव के साथ ही कुंडली में
ग्रहों की स्थिति और उनके बलाबल के द्वारा किया जाना चाहिए। व्यक्ति की जन्म कुंडली के द्वितीय भाव एवं
एकादश भाव से उसकी धन की स्थिति के बारे में जाना जाता है। जब जातक की कुंडली में धन योग श्रेष्ठ होंगे तो
वह व्यक्ति भी उच्च स्तर का व्यवसाय करेगा और उसे धन लाभ भी होगा, इसके विपरीत जब व्यक्ति की कुंडली
में धन योग कमजोर हों और दरिद्र योग प्रबल हों तो उस जातक के सामान्य स्तर का जीवन यापन करने की
संभावनाए ज्यादा होती हैं।
● ज्योतिष के अनुसार जातक की कुंडली में व्यवसाय निर्धारण करने के लिए हमें कुंडली के दशम भाव, दशमेश
और दशमेश के नवांश पति के साथ ही दशमांश कुंडली को भी देखना चाहिए। वहीं दूसरी ओर ग्रहों की शुभ स्थिति
और उनके बलाबल पर भी विचार करना आवश्यक होता है। जन्म कुंडली में द्वितीय भाव पैत्रक कम को आगे
बढ़ाने के साथ ही अपने ज्ञान के उपयोग का भी माना जाता है। इसी प्रकार से तृतीय भाव जातक की व्यवसाय में
रुचि और उसके पराक्रम को दिखाता है। ऐसे ही चतुर्थ भाव उस जातक की प्राथमिक शिक्षा और पंचम भाव उसकी
उच्च शिक्षा को दर्शाने वाला होता है। इन भावों पर शुभ ग्रहों का प्रभाव और उनके स्वामियों की बली एवं शुभ
स्थिति जातक को व्यवसाय और व्यावसायिक शिक्षा में सफलता दिलाने वाली होती है। जब इन भावों के स्वामी
त्रिक भावों में स्थित हो या फिर त्रिक भावों के स्वामी इन भावों में स्थित हो अथवा नीच राशि में हो, शत्रु राशि में हो
या फिर अस्त या बक्री हो जाए तो यह ग्रह कमजोर होकर उस जातक के व्यवसाय और उसकी व्यावसायिक शिक्षा
में बाधाएं उत्पन्न करना शुरू कर देते हैं।
● व्यक्ति की जन्म कुंडली में दशम भाव से उसके कर्म यानि कार्यक्षेत्र का विचार किया जाता है। नवम भाव
भाग्य का है, उससे व्यक्ति के भाग्य की स्थिति को देखते हैं और उस भाग्य की परिणति ही दशम भाव में होती है।
एकादश भाव यानि कि आय का भाव कैरियर से सीधा जुड़ा रहता है। यदि यह भाव पाप कर्तरी योग में हो या फिर
नीच राशिस्थ या अन्य किसी कारण से कमजोर हो जाए तो उस व्यक्ति के करियर निर्माण में बाधाएं देखने को
मिल सकती हैं। इसी प्रकार से कैरियर निर्माण के शुरुआती दौर में दशा-अंतर्दशा के साथ ही गोचर भी यदि अशुभ
फल देने वाला हो तो अपेक्षित प्रयास करने के बाद भी जातक को अनुकूल परिणामों की प्राप्ति नहीं हो पाती।
व्यक्ति को अपनी कुंडली में कारक ग्रहों के रत्न धारण करने चाहिए। क्रूर और कष्ट देने वाले ग्रह के दान एवं जप
करने चाहिए। इसी प्रकार से कुंडली में बनने वाले दुर्योगों के हस्त निर्मित वैदिक यंत्र लगाकर के उनकी पूजा करने
से भी निश्चित ही शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
● ज्योतिष शास्त्र में बुध ग्रह को व्यापार का एवं गुरु व शुक्र ग्रह को धन का विशेष कारक ग्रह माना गया है। जब
जातक की कुंडली में बुध, गुरु एवं शुक्र ग्रह की मजबूत स्थिति रहती है तो जातक व्यापार में अच्छा धन लाभ
प्राप्त करता है।
● यदि दशम भाव में अग्नि-तत्व राशि (1, 5, 9) हो तो यह योग जातक को ऊर्जा, अग्नि, पराक्रम आदि के
क्षेत्रों में सहायक होता है, जैसे- विद्युत संबंधी, अग्नि प्रधान कार्य, सेना, प्रबंध, शल्य-चिकित्सा आदि !
● यदि दशम भाव में भूमि-तत्व राशि (2, 6, 10) हो तो यह योग भूमि या भू-संपदा से संबंधी कार्यों में
सहायक होता है, जैसे- भूमि विक्रय, प्रोपर्टी डीलिंग, भवन निर्माण, भू-संपदा आदि !
● यदि दशम भाव में वायु-तत्व राशि हो (3, 7, 11) हो तो यह योग जातक को बुद्धिपरक कार्यों में सहायक
होता है, जैसे- कम्प्यूटर संबंधी, एकाउंट्स, लेखन, वैज्ञानिक, लेखा-जोखा रखना आदि !
● यदि दशम भाव में जल-तत्व राशि (4, 8, 12) हो तो यह योग जातक को जल या पेय पदार्थ संबंधी
कार्यों में सहायक होगा जैसे- जल, पेय पदार्थ, नेवी, सिंचाई आदि !
● जब कुंडली में दशमेश, द्वितीयेश के साथ केंद्र या त्रिकोण में युति करता है तो ऐसा जातक अपने पैत्रक कार्य में
संलग्न होकर उसे आगे बढ़ता है। यदि ऐसे जातक की कुंडली में बुध और शुक्र ग्रह भी बलवान हो तो वह व्यक्ति
व्यवसाय में बुलंदी और श्रेष्ठ धन लाभ को प्राप्त करता है।
● इसी प्रकार से जातक की कुंडली में दशम भाव में मंगल और सूर्य के स्थित होने पर इन ग्रहों को बलवान माना
जाता है और ऐसी स्थिति में जातक अच्छे पद और प्रतिष्ठा को जीवन में प्राप्त करता है। यदि वह व्यक्ति जोव में
होगा तो उच्च पद पर होगा और व्यवसाय करेगा तो श्रेष्ठ धन लाभ के साथ ही प्रसिद्धि को भी हासिल करेगा।
● व्यापार अथवा करियर में धन लाभ के लिए व्यक्ति को अपने पूजा घर में हस्त निर्मित लक्ष्मी बीसा यंत्र, संपूर्ण
वास्तु यंत्र, हस्त निर्मित एवं रत्न जड़ित संपूर्ण श्री यंत्र के साथ ही गोमती चक्र युक्त कछुआ और गोमती चक्र
युक्त स्वास्तिक का प्रयोग करना भी बेहद शुभ और उत्तम फलदायक माना जाता है।
■ ज्योतिष फलदायक न होकर फल सूचक है ! किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले किसी योग्य
ज्योतिर्विद से संपूर्ण कुंडली के परामर्श करने के बाद ही किसी सार्थक निर्णय पर पहुंचना उचित माना जाता है।
Website- www.astrologeryogesh.com
डॉ योगेश व्यास, ज्योतिषाचार्य (टॉपर),
नेट (साहित्य एवं ज्योतिष), पीएच.डी (ज्योतिषशास्त्र)
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