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Dr. Yogesh Vyas

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वास्तु शास्त्र की उपयोगिता

वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में यदि वास्तु के अकॉर्डिंग चीजों को व्यवस्थित किया जाए तो निश्चित रूप से आपके घर में सुख, शांति, समृद्धि, खुशियां, धनागमन और मान सम्मान में वृद्धि देखने को मिलेगी। वास्तु शास्त्र- घर , बड़े भवन हवेलियों और मंदिर आदि के निर्माण करने का एक प्राचीन विज्ञान है। इस वास्तु शास्त्र को अंग्रेजी में आज आर्किटेक्चर के नाम से भी जाना जाता है। वास्तु शास्त्र हमारे दैनिक जीवन में उपयोगी वस्तुओं को व्यवस्थित रूप से एक सही जगह पर स्थापित करने का ज्ञान देने वाला शास्त्र भी है। मूल रूप से वास्तु शब्द संस्कृत भाषा का है और यह वस् धातु से बना है। वस् धातु का प्रयोग निवास स्थान आदि को लेकर किया जाता है। इस प्रकार वास्तु शास्त्र घर बनाने की जगह, भवन, भूखंड, बड़े आवास, भूमि इत्यादि से जुड़ा हुआ शास्त्र है। यह वास्तु शास्त्र ईशान कोण आदि से प्रारंभ होकर गृह निर्माण की वह कला है जिसके माध्यम से प्राकृतिक आपदाओं और कष्टों से बचा जा सकता है। वास्तु शास्त्र का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के जीवन में संतुलन, सुख, शांति और समृद्धि को बढ़ाना है।

जिस प्रकार से ज्योतिष शास्त्र में प्रत्यक्ष रूप से व्यक्ति की कुंडली में विद्यमान नवग्रहों के द्वारा व्यक्ति के जीवन का अध्ययन किया जाता है उसी प्रकार से वास्तुशास्त्र में भी भवन की संरचना का व्यक्ति के जीवन पर स्पष्ट रूप से पढ़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र खगोलीय पिंडों की व्याख्या करता है उसके माध्यम से मानव जीवन के ऊपर उन ग्रहों के प्रभाव को बताता है और वास्तु शास्त्र व्यक्ति के जीवन में संतुलन और उन्नति लाने के लिए इमारत और घरों के डिजाइन के साथ ही उनके निर्माण के विषय में जानकारी देता है। ज्योतिष शास्त्र के सभी ग्रह वास्तु शास्त्र से स्पष्ट रूप से जुड़े हुए हैं। वास्तु शास्त्र में जिन प्रमुख आठ दिशाओं की चर्चा है तो उन सभी दिशाओं के जो स्वामी ग्रह है वह ज्योतिष शास्त्र में विद्यमान ग्रह ही है। व्यक्ति की कुंडली में यदि किसी ग्रह से संबंधित परेशानी है तो उस व्यक्ति के घर में भी उस ग्रह से संबंधित घर की उस दिशा में निश्चित रूप से कोई न कोई परेशानी देखने को मिलेगी। यह ज्योतिष और वास्तु के स्पष्ट संबंध को दर्शाता है।

● पंच महाभूत की बात करें तो वास्तु शास्त्र में यह मान्यता है कि प्रत्येक भवन को पंच महाभूत की उपस्थिति को सही तरीके से स्वीकार करना चाहिए जैसे कि ईशान कोण में जल की प्रधानता, अग्नि कोण में अग्नि की प्रधानता, नैऋत्य कोण में पृथ्वी तत्व की प्रधानता, वायव्य कोण में वायु तत्व की प्रधानता और केंद्र में आकाश तत्व की प्रधानता देखने को मिलती है। यही पंच महाभूत और उनके सही संतुलन के माध्यम से भवन में निश्चित रूप से सकारात्मक ऊर्जा का विकास किया जा सकता है।

इतिहास- हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार वास्तु देव भूमि के देवता हैं। यानी जिस जमीन पर हम गृह निर्माण करते हैं उसके असली मालिक वास्तु देव हैं। यही कारण है कि किसी भी भवन के निर्माण से पहले वास्तु देव की पूजा की जाती है। वास्तु के नियमों के अनुसार ही उसका निर्माण करना होता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार वास्तु देव का जन्म भगवान शिव के पसीने की बूंद से हुआ है। प्राचीन लोक कथाओं में भी इस बात का जिक्र है कि जब भगवान शिव व अंधकासुर राक्षस के बीच भयानक युद्ध हुआ तो शिवजी के शरीर से पसीने की कुछ बूंदें जमीन पर गिरी थीं। उन्हीं बूंदों से आकाश व पृथ्वी को भयभीत करने वाला एक प्राणी प्रकट हुआ, जो देवताओं को मारने लगा। ये देखकर इंद्रलोक के सभी देवगण डरकर ब्रह्मा जी की शरण में पहुंचे। ब्रह्माजी ने देवताओं को उस पुरुष से डरने की बजाय औंधे मुंह गिराकर उस पर बैठने की सलाह दी। देवताओं ने वैसा ही किया। सभी ने मिलकर उस प्राणी को उल्टा गिराकर सभी उस पर बैठ गए। जब ब्रह्मा जी वहां पहुंचे तो उस पुरुष ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना कर अपना दोष व देवताओं के साथ किए जाने वाले व्यवहार के बारे में पूछा। इस पर ब्रह्मा जी ने उन्हें क्षमा करते हुए वास्तु देवता घोषित कर दिया। आशीर्वाद दिया कि किसी भी घर, गांव, नगर, दुर्ग, मंदिर, बाग आदि के निर्माण के अवसर पर देवताओं के साथ उसकी भी पूजा की जाएगी। जो ऐसा नहीं करेगा, उस व्यक्ति के जीवन में बाधाएं आती रहेंगी। दरिद्रता के साथ वह अकाल मृत्यु को प्राप्त होगा। तभी से वास्तु देवता को भूमि व भवन के देवता के रूप में पूजा जाता है।

● वास्तु देवता पृथ्वी पर उल्टे लेटे हुए हैं। उनका पेट पृथ्वी की ओर है उनका सर ईशान कोण यानी कि उत्तर-पूर्व दिशा में है और उनके पैर नैरिट्य यानि कि दक्षिण-पश्चिम दिशा में है। उनकी दाएं भुजा आग्नेय कोण में और वाई भुजा वायव्य कोण में है। वास्तु देवता के हृदय और नाभि को मध्य स्थान यानी कि ब्रह्मस्थान में माना जाता है। वास्तु देवता का सर ईशान कोण में होने के कारण भवन के ईशान कोण को हल्का और साफ बना कर रखा जाता है। वास्तु देवता के शरीर पर कुछ मर्म स्थान है जैसे कि सर और हृदय। इन स्थानों पर भारी वजन, बड़े खंबे या गड्ढे आदि नहीं बनाने चाहिए।

● वास्तु दोष और उनके दुष्परिणाम- वास्तु शास्त्र में पंच महाभूत के विपरीत जाकर गृह निर्माण वास्तु दोष कहलाता है और इस वास्तु दोष के मानव जीवन के ऊपर काफी बड़े और विपरीत परिणाम देखने को मिलते हैं। यह वास्तु दोष घर की सुख, शांति, समृद्धि के साथ ही शारीरिक स्वास्थ्य पर भी काफी बुरा असर डाल सकते हैं। जब तक किसी व्यक्ति की कुंडली में ग्रह दशा काफी ठीक चल रही होती है तब तक ही वास्तु दोष का प्रभाव कम देखने को मिलता है लेकिन जैसे ही उस व्यक्ति की कुंडली में गृह दशाएं और गोचर कमजोर पड़ने लगते हैं तो उस व्यक्ति को अपने जीवन में वास्तु दोष के ये दुष्प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। अगर भवन का निर्माण वास्तु शास्त्र के अनुकूल नहीं हुआ है तो आपको परेशानियों का सामना करना होगा। एंटी कलर एक बड़ा वास्तु दोष हो सकता है, जैसे ईशान कोण में जलीय तत्व की प्रधानता है और वहां पर अग्नि तत्व को स्थापित कर दिया जाए तो निश्चित रूप से व्यक्ति को जीवन में मानसिक परेशानियां और आर्थिक समस्यायें देखने को मिलेंगी। इसी प्रकार से एंटी कलर की बात करें तो ईशान कोण का जो रंग नीला है और वहां पर अगर अग्नि तत्व के लाल रंग का प्रयोग किया जाए तो निश्चित रूप से आपके ईशान कोण में आपको दोष देखने को मिलेंगे। ऐसे ही एंटी कंस्ट्रक्शन की बात की जाए तो ईशान कोण में वास्तु देवता का सिर है जो की बहुत ही हल्का और स्वच्छ स्थान माना जाता है वहां पर टॉयलेट का निर्माण निश्चित रूप से आपके ईशान कोण की पॉजिटिव एनर्जी को खत्म कर देगा। वास्तु शास्त्र के पालन से हो सकते हैं ये लाभ

● वास्तु शास्त्र क्या है और किस नियम का पालन करना होता है शुभ- वास्तुशास्त्र प्रकृतिक ऊर्जा और तत्वों के संतुलन पर आधारित है, जिससे घर और व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है. वास्तु के अनुसार घर बनाने और उसमें चीजें रखने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं.
● सकारात्मक ऊर्जा : वास्तु शास्त्र के नियमों के अनुसार भवन की निर्माण और स्थापना किए जाने से सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है। इससे वहां रहने वाले लोगों की मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक तत्वों को प्रभावित करने में मदद मिलती है।
● सुख-शांति : वास्तु शास्त्र के नियमों का पालन करने से भवन में सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है जो लोगों को सुख, शांति और समृद्धि देती है। सही दिशा, प्राकृतिक प्रकाश, वातावरण का साफ़ और स्वच्छ रहना और ऊर्जा के संतुलन का से शांति और सुख मिलता है।
● व्यावसायिक सफलता : वास्तु शास्त्र के नियमों के अनुसार व्यापारिक और व्यवसायिक स्थानों की योजना और निर्माण करने से व्यवसायिक सफलता में सुधार हो सकता है। अच्छी दिशा, दुकान की आकृति, सही स्थान और उपयुक्त वातावरण प्रगति का परिचायक है।
● आर्थिक लाभ : वास्तु शास्त्र के नियमों का पालन करने से भवन का निर्माण आर्थिक रूप से फायदेमंद हो सकता है। उचित आकर्षण और दक्षता से निर्मित भवन संपत्ति का मूल्य बढ़ता है।
● अधिक सुखद और स्वस्थ जीवन : वास्तु शास्त्र के नियमों का पालन करने से भवन के निर्माण में सभी आवश्यक वास्तुकला और भौतिकी नियमों का पालन होता है जो सुखद और स्वस्थ जीवन की ओर अग्रसर करता है।
● वास्तु शास्त्र में दिशाओं की ऊर्जा का विशेष रूप से महत्व दिखाई देता है। हर दिशा अपने आप में अपने अलग गुण और पहचान लिए हुए हैं। मोटे तौर पर देखा जाए तो वास्तु शास्त्र में चार दिशाएं पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण देखने को मिलती है। इसके अलावा चार उप दिशाएं ईशान, वायव्य, आग्नेय और नेरित्य भी है। इस प्रकार कुछ आठ दिशाएं हैं। आकाश और पाताल को भी सम्मिलित किया जाए तो वास्तु शास्त्र में कुल 10 दिशाओं के विषय में जानकारी मिलती है। जब किसी भी भवन में इन दिशाओं के निर्देशों का पालन करते हुए निर्माण किया जाता है तो निश्चित रूप से उस घर में सुख और समृद्धि का वास देखने को मिलता है।

वास्तु शास्त्र में रंगों का महत्व और प्रभाव-
आज यह स्पष्ट रूप से दिखाई देता है कि लोगों पर रंगों का मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। कुछ खास रंग लोगों में कुछ विशेष प्रकार के इमोशन पैदा करते हैं इसलिए घर में रंगों का संतुलन बनाए रखना बेहद जरूरी है। इस संतुलन से आप एक स्वस्थ और व्यवस्थित जीवन जी सकते हैं। पॉजिटिव एनर्जी के संचार के लिए आपको वास्तु के अनुसार रंगों का चयन करना चाहिए और यह रंगों का सही चयन आपके मन और मस्तिष्क पर निश्चित रूप से अच्छा प्रभाव डालेगा। सही रंगों के चयन से आप नेगेटिव एनर्जी को दूर करके पॉजिटिव एनर्जी को अपने घर में बढ़ा सकते हैं। रंगों का चयन हमारी मनोदशा को भी प्रभावित करता है। सौभाग्य और समृद्धि के लिए कुछ विशेष प्रकार के रंगों का घर में चयन निश्चित रूप से आपको सकारात्मक परिणाम देने वाला साबित होगा। वास्तु शास्त्र में पांच तत्वों को महत्वपूर्ण माना गया है पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। प्रत्येक तत्व को एक विशेष प्रकार के रंग से जोड़ा गया है। वास्तु के अनुसार घर के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग रंगों का प्रयोग करने से निश्चित रूप से इसके सकारात्मक परिणाम जीवन में आते हैं।

● पृथ्वी तत्व की बात करें तो यह तत्व स्थिरता को लेकर काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। घर के नृत्य कोण में पृथ्वी तत्व की प्रधानता होती है और यहां पर आपको मिट्टी जैसा भूरा रंग या फिर पीले रंग का प्रयोग करना चाहिए।

● अग्नि तत्व की बात करें तो यह प्रकाश और पॉजिटिव एनर्जी का प्रतीक है। घर के आग्नेय कोण और दक्षिण दिशा में इस रंग का प्रयोग करना चाहिए। अग्नि तत्व में लाल और नारंगी रंगों को शामिल किया गया है
● जलीय तत्व की बात करें तो इसका रंग नीला होता है। यह जलीय तत्व शांति और विश्राम का प्रतीक है। इसे घर के ईशान और उत्तर दिशा में करना चाहिए वायु तत्व यह प्रकृति और उसके सौंदर्य का प्रतीक है इसमें हल्के हरे रंग का आपके घर के पूरब और वायव्य कोण में प्रयोग करना चाहिए।
● आकाश तत्व की बात करें तो यह आपकी आध्यात्मिक ऊर्जा और ध्यान को विकसित करता है। इसको आप अपने घर के पश्चिम दिशा के साथ ही ब्रह्म स्थान में भी प्रयोग कर सकते हैं। आकाशीय तत्व में सफेद, क्रीम और ग्रे रंग को शामिल किया गया है।
● वास्तु के अनुसार घर के लिए सही रंगों का चयन करके निश्चित रूप से आप अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने के साथ ही अपने जीवन को सुखी, समृद्ध और उन्नत भी बना सकते हैं।

दीवार के वो रंग जो सकारात्मक ऊर्जा को पैदा करते हैं
● पीला- पीला रंग संचार, आत्म-सम्मान और शक्ति से जुड़ा है।
● बैंगनी- बैंगनी स्थिरता के लिए वातावरण बनाता है। आरामदायक और सुकून भरी नींद के लिए आप लैवेंडर जैसे हल्के रंगों का चुनाव कर सकते हैं।
● हरा- हरा रंग तनाव को शांत करता है। यह लकड़ी के तत्व से भी जुड़ा है और इसमें तनाव और डिप्रेशन को दूर करने के गुण हैं।

वास्तु की 8 दिशाओं का महत्व क्या है
वास्तु शास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जिसमें दिशाओं की ऊर्जा का महत्व है। पूर्व, उत्तर, दक्षिण, पश्चिम के अलावा चार कोणीय दिशाओं की भी गणना इस विज्ञान के तहत की जाती है।
● पूर्व दिशा- इस दिशा के स्वामी ग्रह सूर्य और देवता इंद्र हैं। यह दिशा अच्छे स्वास्थ्य, बुद्धि और ऐश्वर्य की घोतक है इसलिए जब आप भवन का निर्माण करें तो पूर्व दिशा का कुछ हिस्सा खुला छोड़ दें। नियम के अनुसार इस स्थान को थोड़ा नीचे रखना चाहिए ताकि आपने पितरों का आशीर्वाद आपको मिलता रहे।इसदिशा के ख़राब होने पर सिर दर्द और ह्रदय रोग जैसी बीमारी होती है। 
● पश्चिम दिशा - इस दिशा के स्वामी ग्रह शनि और देवता वरुण हैं। यह दिशा सफलता और प्रसिद्धि को दर्शाती है। इस दिशा ने गड्ढा और दरार नहीं होनी चाहिए और ना ही यह दिशा नीची होनी चाहिए। अगर घर के स्वामी को किसी भी कार्य में सफलता हाथ नहीं लग रही है तो आप समझ जाइए कि इस दिशा में दोष है। इस दिशा के बिगड़ जाने से पेट और गुप्त अंग में रोग होता है। 
● उत्तर दिशा - इस दिशा के स्वामी ग्रह बुध और देवता कुबेर हैं। यह दिशा बुद्धि, ज्ञान और मनन की दिशा है। इस दिशा से मां का भी विचार किया जाता है इसलिए उत्तर में थोड़ा स्थान खाली छोड़कर भवन का निर्माण करवाएं तो माता का स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है। इस दिशा के ऊँचा और दोषपूर्ण होने पर छाती और फेफका रोग हो सकता है। 
● दक्षिण दिशा - इस दिशा के स्वामी ग्रह मंगल हैं और देवता यमराज हैं। यह दिशा पद और प्रतिष्ठा दर्शाती है। इस दिशा से पिता के सुख भी विचार किया जाता है। इस दिशा को आप जितना भारी और ऊँचा रखते हैं आपको उतना ही समाज में सम्मान मिलता है। यह शरीर के मेरुदंड की भी कारक है। इस में दर्पण और पानी की व्यवस्था कभी भी नहीं करनी चाहिए। 
● ईशान कोण - इस दिशा के स्वामी ग्रहगुरु हैं और देवता श्री विष्णु हैं। यह दिशा ज्ञान, विवेक और बुद्धि की सूचक है। इस दिशा को हमेशा साफ़ रखे, खुला रखे और नीच रखे। इस दिशा में कोशिश करे की किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य नहीं हो। अगर यह दिशा दोष रहित है तो सम्पूर्ण वंश को समृद्धि मिलती है। इस दिशा में बाथरूम होना या कूड़ा रखना बीमारी का संकेत है। 
● वायव्य कोण - इस दिशा के स्वामी चन्द्रमा और देवता पवन देव हैं। इस दिशा का जुड़ाव आपके घर आने वाले लोगों से और आपके मित्रों से है। आपका मानसिक विकास और आपके शुक्राणु भी इसी दिशा से देखे जाते हैं। यह कोण ईशान कोण की तुलना में अधिक नीच नहीं होना चाहिए। यहां ऊँची इमारत का निर्माण आपके शत्रु की संख्या में वृद्धि करता है और घर की स्त्री को बीमार करता है। 
● आग्नेय कोण - इस दिशा के स्वामी ग्रह शुक्र और देवता अग्नि देव हैं। यह दिशा व्यक्ति की सेहत को बताती है। प्रजनन क्रिया और संतति वृद्धि इसी दिशा से होती है। आपकी नींद और शयन सुख भी इसी दिशा से देखा जाता है। इस दिशा के खराब होने से स्त्री को दोष लगता है और संतान पैदा होने में दिक्क्त होगी। इस दिशा के ख़राब होने से लोग आलसी हो जाते है। इस दिशा को सदैव दोषपूर्ण रखने से पति पत्नी अच्छा शारीरिक सुख भोगते हैं।  
● नैऋत्य कोण- इस दिशा के स्वामी ग्रह राहु और देवता नैऋती नाम की एक असुर स्त्री है। यह दिशा असुर और क्रूर कर्म करने वाली की दिशा है। घर की किसी स्त्री के साथ शारीरिक शोषण अगर हो तो इसी दिशा के दोष से होता है। इसलिए इस दिशा को कभी भी खाली और रिक्त नहीं छोड़ना चाहिए। यह दिशा गृह स्वामी के निर्णय शक्ति को दर्शाती है। अगर  यहां पानी हो, गड्ढा हो या नीचा हो तो घर में अकाल मौत होती है।  कई विद्वानों के मत से आकाश और पाताल भी दिशा है और इस प्रकार के कुल मिलकर 10 दिशा होती है।



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🪶 डॉ योगेश व्यास, ज्योतिषाचार्य, (टापर),
नेट ( साहित्य एवं ज्योतिष ),
पीएच.डी (ज्योतिषशास्त्र)
मानसरोवर (जयपुर),
Website- www.astrologeryogesh.com
Mob- 8058169959

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