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वास्तु द्वारा भूमि चयन (Land Selection)-
किसी भी भवन के निर्माण में सबसे पहले श्रेष्ठ भूमि का चयन ही महत्वपूर्ण होता है। वास्तु शास्त्र में भूमि के चयन से पहले उस भूमि का ढलान, मिट्टी की सुगंध, आस-पास का वातावरण के साथ ही और भी कई चीजों को देखा जाता है। इन भूमियों के लाभ और हानि के बारे में वास्तु शास्त्र के कई ग्रंथों में विस्तार से वर्णन देखने को मिलता है। आवासीय भूखंड हेतु हमेशा जीवित भूमि का ही चयन करना चाहिए। जिस भूमि पर पेड़ -पौधे हरे भरे रहते हो और उत्तम अनाज पैदा हो उसे जीवित भूमि कहते हैं। जिस भूमि में दीमक या हड्डी हो अथवा जो भूमि कटी- फटी हो उसे आवासीय भवन के निर्माण में प्रयोग नहीं करना चाहिए। कटी –फटी, ऊसर अथवा उबड़- खाबड़ भूमि पर रहने से कई परेशानियों का सामना करना पडता है। व्यवसायिक भूखण्ड में उत्तर एवं पूर्व के क्षेत्र को हल्का एवं खुला हुआ रखना चाहिए।
जो भूमि पश्चिम में ऊंची और पूर्व दिशा में नीची हो तो उसे गोवीथी भूखंड कहते हैं। इस भूमि पर निवास करने वालों की आयु, बल और यश के साथ ही पुत्र संतान में भी वृद्धि होती है। जिस भूमि पर नेवले का वास हो उस भूमि पर बने मकान में रहने वालों की भी संपत्ति और प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। जिस भूमि पर अस्तबल हो ऐसी भूमि भी रहने के लिए शुभ मानी जाती है और वहां भी आरोग्य व धन संपत्ति की प्राप्ति होती है। जिस भूमि पर गौशाला हो वहां भी भवन बनाकर रहना अच्छा होता है परंतु, गायों के चारागाह के स्थान पर घर बनाकर नहीं रहना चाहिए। व्यापारिक परिसर का भूखंड वर्गाकार या आयताकार होना चाहिए। आयताकार में भी भूखंड की लंबाई को चौड़ाई के दोगुने के बराबर रहना अच्छा माना जाता है। फैक्ट्री या उद्योग के लिए सदैव ऐसी भूमि का चयन करें जहां पर तुलसी का पौधा आसानी से लग जाता हो। भूखंड के मध्य स्थान यानि ब्रह्म स्थान को खुला रखना चाहिए। ब्रह्म स्थान पर किसी भी तरह का निर्माण कार्य करना व्यवसाय में कई परेशानियों को जन्म देता है।
व्यावसायिक परिसर के उत्तर, पूर्व या ईशान कोण में कूआ, हैंडपंप, फव्वारा एवं भूमिगत जल आदि की व्यवस्था करके जातक सुखी रहता है। पूर्व दिशा राज्य, राजनीति और प्रशासन से जुड़ी दिशा मानी जाती है इसलिए, पूर्व की ओर ढलान वाले भूखंड में घर बनाकर रहने से राजकीय कर्मचारी एवं राजनीति से जुड़े हुए लोगों को शुभ फलों की प्राप्ति होती है। जिस भूमि पर कुत्ते, सियार, सूअर जैसे अपवित्र जानवर नियमित रहते हैं, वह भूखंड लाभप्रद नहीं माना जाता। ऐसे ही जिस भूमि में सांप और बिच्छू निरंतर बने रहते हैं वहां पर भी घर बना कर रहना शुभ नहीं होता। जिस भूमि में कोयला, लोहा, शीशा जैसी धातुएं निकलती हैं, वह भूमि आसुरी कहलाती है और वहां पर भी घर बना कर रहना शुभ नहीं माना जाता। भूमि या भवन से संबंधित कोई भी दोष होने पर दोष निवारण हेतु आठों दिशाओं के रत्न जड़ित संपूर्ण वास्तु यंत्र को अपने घर में अवश्य लगाना चाहिए ! इस प्रकार आप भी उत्तम भूमि का चयन करके जीवन को उन्नत बना सकते हैं।