कुंडली में ग्रहों की युती और फल
वैदिक ज्योज्योतिष के अनुसार हमारी कुंडली में 12 घर,12 राशियां और 9 ग्रह होते हैं ! हमारे जीवन की हर छोटी से छोटी
घटना इन 12 घरों, 12 राशियों और 9 ग्रहों से जुड़ी होती हैं ! ऐसे कुछ लक्षण हैं जिन्हें देखकर ही हमारे मन में आशंका जागृत
होती है कि हमारा काम बनेगा अथवा नहीं बनेगा। काम में गतिरोध या रोड़ा आने का संकेत देने वाले कुछ संकेतों को हम ग्रहों
की युति कहकर संबोधित करते हैं। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की युति के बारे में हमें विस्तृत रूप से जानकारी मिलती है।
इस लेख के माध्यम से हम अपने पाठकों को लाभांवित करने हेतु विभिन्न ग्रहों की युति से जुड़े विभिन्न परिस्थितियों का वर्णन
कर रहे हैं।
प्रायः व्यवहारिक ज्योतिष के नियम के अनुसार --शनि ,राहु एवं केतु जन्मांग के दूसरे,तीसरे,छटे ,नवें ,दसवें तथा ग्यारहवें भावों
में शुभ फल देते हैं । जिन व्यक्तियों के केंद्र में सूर्य के साथ मंगल हो उस व्यक्ति के माता पिता ही उसे श्रेष्ठ ज्ञान के दाता होते हैं !
जिस व्यक्ति के लग्नेश छठे भाव में और शुक्र बैठा हैं, उस व्यक्ति के पारिवारिक लोग ही ज्यादा शत्रु होते हैं ! उसके बावजूद वह
व्यक्ति शिखर पर पहुंचता है ! इसी प्रकार से जिस व्यक्ति के जन्म स्थान से एकादश भाव में राहु बैठा हुआ है, वह व्यक्ति धनवान
होता है, कई प्रकार के सुख सुविधाएं प्राप्त करता है, जीवन सुखी रहता है ! एकादश भाव में राहु बैठा है तो पंचम भाव में केतु
बैठेगा, केतु ज्ञानवान,विजवान और ज्योतिषी बनाता है ! सामने वाला व्यक्ति क्या कहना चाहता है उसकी बात को वह पहले ही
जान लेता है ! यहां हम जानते हैं कि कौनसा ग्रह जातक के जीवन में कितने समय के लिए महादशा के रूप में आता है।
ग्रह-
ग्रह- लिंग विम्शोतरी दशा (वर्ष)
सूर्य पुल्लिंग 6 वर्ष
चंद्र स्त्रीलिंग 10 वर्ष
मंगल पुल्लिंग 7 वर्ष
बुध नपुंसक 17 वर्ष
बृहस्पति पुल्लिंग 16 वर्ष
शुक्र स्त्रीलिंग 20 वर्ष
शनि पुल्लिंग 19 वर्ष
राहु पुल्लिंग 18 वर्ष
केतु पुल्लिंग 7 वर्ष
जानिये कुंडली में दो ग्रहों की युति और उसका फल- जातक की कुंडली में सूर्य और चंद्रमा के साथ जब अन्य ग्रहों की युति होती है तो
निम्न फलों की संभावना बनती है। तो आईए इन ग्रहों की युतियों के सामान्य फल को जानते हैं।
●सूर्य+चन्द्रमा- राजकीय ठाठ - बाठ , अधिकार, पद, उत्तम राजयोग , डॉक्टर , दो विवाह , गृहस्थ जीवन हल्का , स्त्रीयों द्वारा
विरोध, बुढ़ापा उत्तम इसके साथ ही उस व्यक्ति के जीवन की उत्तरावस्था उत्तम रहने की संभावना बनती है।
● सूर्य+ मंगल- साहसी , अग्नि से सम्बंधित कामों में सफलता , सर्जन , डॉक्टर , अधिकारी , सर में चोट, का निशान , दुर्घटना ,
खुद का मकान बनाये और इससे बचपन में कष्ट की संभावना बनती है।
● सूर्य+बुध- विद्या , बुद्धि देता है, सरकारी नौकरी, ज्योतिष , अपने प्रयास से धनवान , बचपन में कष्ट, इस युति के कारण व्यक्ति
को स्वयं की मेहनत से जीवन में सफलता मिलती है।
● सूर्य+गुरू- मान-मर्यादा , श्रेष्टता , उच्च पद तथा यश में वृद्धि करता है, स्वयं की मेहनत से सफलता और यह युति पिता के लिए
शुभ नहीं मानी जाती।
● सूर्य+शुक्र- कला, साहित्य, यांत्रिक कला का ज्ञान , क्रोध, प्रेम सम्बन्ध , बुरे, गृहस्थ बुरा , संतान में देरी , तपेदिक , पिता के
लिए अशुभ इसके साथ ही इस युति के कारण पत्नी का स्वास्थ्य भी कमजोर रहता है।
● सूर्य+शनि- पिता-पुत्र में बिगाड़ अथवा जुदाई। युवावस्था में संकट, राज दरबार बुरा। स्वास्थ कमजोर। पिता की मृत्यु ,
गरीबी। घरेलू अशांति। पत्नी का स्वास्थ कमजोर।
● सूर्य+राहू- सरकारी नौकरी में परेशानी। चमड़ी पर दाग , खर्च हो। घरेलू अशांति , परिवार की बदनामी का डर। श्वसुर की
धन की स्थिति कमजोर और सूर्य से राहु की युति के कारण सूर्य को ग्रहण भी लग जाता है।
● सूर्य+केतू- सरकारी काम अथवा सरकारी नौकरी में उतार-चढ़ाव। संतान का फल बुरा और संतान विषयक शुभ परिणाम में भी
कमी देखने को मिलती है।
● चन्द्रमा+मंगल- मन की स्थिति डांवाडोल। दुर्घटना। साहसिक कामों से धन लाभ' उत्तम धन और यह युति जातक को उत्तम धन
प्रदान करती है।
● चन्द्र+बुध- उत्तम वक्ता। बुद्धिमत्ता। लेखन शक्ति। गहन चिंतन। स्वास्थ में गड़बड़। दो विवाह योग। मानसिक असंतुलन और दो
विवाहों के योग की संभावना के साथ ही मानसिक स्थिरता में भी कमी कर सकती है।
● चन्द्र+गुरू- उत्तम स्थिति। धन प्राप्ति। बैंक में अधिकारी। उच्च पद। मान-सम्मान। धनी। यदि पाप दृष्टी हो तो विद्द्या में
रूकावट ! यदि इस युति पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक की उच्च शिक्षा में थोड़ी रुकावट देखने को मिल सकती है।
● चन्द्र+शुक्र- दो विवाह योग। अन्य स्त्री से सम्बन्ध। विलासी। शान-शौकत का प्रेमी। रात का सुख। इस युति में अन्य स्त्रियों से भी
आसक्ति, भोग विलास से युक्त जीवन, शान- शौकत, जीवन में कई लोगों से प्रेम और कुछ परिस्थितियों में दो विवाहों की भी संभावना
बनती है।
● चन्द्र+शनि- दुःख। मानसिक तनाव। नज़र की खराबी। माता तथा धन के लिए ठीक नहीं। हर काम में रूकावट। गरीबी।
शराबी। उदास ,सन्यासी। स्त्री सुख में कमी। जीवन की उत्तरावस्था में संन्यास की ओर झुकाव के साथ ही स्त्री सुख में भी यह युति कमी
करती है।
●चन्द्र+राहू- पानी से डर। शरीर पर दाग। विदेश यात्रा। जिस भाव में स्थित हो उसकी हानी। यह युति जातक की कुंडली के जिस
भाव में होगी उस भाव के शुभ फलों में कमी करती है।
● चन्द्र+केतू- विद्या में रूकावट। मूत्र वीकार। जोड़ों में दर्द। केमिस्ट बनाने के साथ ही मूत्र विकार को भी यह युति बढ़ा सकती है।
● ज्योतिष के अनुसार इन ग्रहों की युतियों का इस प्रकार से सामान्य फल देखने को मिलता है लेकिन, इन ग्रहों के उच्च, नीच, स्थान आदि
बल के साथ ही राशि, नवमांश और नक्षत्र की स्थिति को भी देख लेना आवश्यक होता है।
■ ज्योतिष फलदायक न होकर फल सूचक है ! किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले किसी योग्य ज्योतिर्विद से संपूर्ण कुंडली के
परामर्श करने के बाद ही किसी सार्थक निर्णय पर पहुंचना उचित माना जाता है।
Website- www.astrologeryogesh.com
डॉ योगेश व्यास, ज्योतिषाचार्य (टॉपर),
नेट (साहित्य एवं ज्योतिष), पीएच.डी (ज्योतिषशास्त्र)
Contact for Astrology and Vastu- 8696743637, 8058169959