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Dr. Yogesh Vyas

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ग्रहों के अनुकूल रत्न

  रत्नों में ग्रहों की उर्जा को अवशोषित करने की अद्भुत क्षमता होती है। रत्नों में विराजमान अलौकि गुणों के कारण रत्नों को ग्रहों का अंश भी माना जाता है। ज्योतिषशास्त्र की सभी शाखाओं में रत्नों के महत्व का वर्णन मिलता है।रत्न में अद्भुत शक्तियां होती है!.रत्न अगर सही समय में और ग्रहों की सही स्थिति को देखकर धारण किये जाएं तो इनका सकारात्मक प्रभाव प्राप्त होता है अन्यथा रत्न विपरीत प्रभाव भी देते हैं.ग्रहों के समान रत्नों में भी आपसी विद्वेष होता है! यह भी जानना आवश्यक होता है. कि किस रत्न के साथ दूसरे रत्नों को धारण कर सकते हैं ! रत्न उस समय धारण करना विशेष लाभप्रद होता है जब सम्बन्धित ग्रह की दशा चल रही होती है!

ग्रह रत्न और धातु--
ग्रह रत्न धारण करने का विशेष नियम है। जिस ग्रह का रत्न धारण करना हो उस ग्रह से सम्बन्धित धातु की अंगूठी में रत्न धारण करना चाहिए!अगर कुण्डली में सूर्य को जगाना हो, बलशाली बनाना हो तो सोने की अंगूठी में माणिक्य धारण करना चाहिए। सोना सूर्य का धातु है और माणिक्य उसका रत्न अत: दोनों मिलकर परिणाम अनुकूल बनाते हैं। इसी प्रकार सभी ग्रहों का अपना रत्न और धातु है। ग्रहों के मंदे फल से बचने के लिए जब भी अंगूठी बना रहे हों इस बात का ख्याल रखना चाहिए। चन्द्रमा का रत्न है मोती और धातु है चांदी। मंगल का रत्न है मूंगा और धातु है तांबा। बुध का रत्न है पन्ना और धातु है सोना! गुरू का रत्न पुखराज है और धातु है सोना। शुक्र का रत्न है हीरा और धातु है चांदी। शनि का रत्न नीलम और धातु है लोहा। राहु का प्रिय रत्न है गोमेद और धातु है अष्टधातु। केतु का रत्न है लहसुनियां जिसे सोना अथवा तांबा किसी भी अंगूठी में धारण किया जा सकता है! । धातु और रत्न समान ग्रह से सम्बन्धित हैं तो परिणाम विशेष अनुकूल होता है।

सूर्य रत्न माणिक्य--
ग्रहों में राजा सूर्य का रत्न माणिक्य होता है! अगर कुण्डली मे सूर्य किसी भाव में शुभ स्थिति में विराजमान है तो उस भाव की शुभता एवं सूर्य के प्रभाव को बढ़ाने के लिए माणिक्य धारण करना चाहिए! सूर्य अगर तृतीय, छठे अथवा ग्यारहवें भाव में हो तो माणिक्य धारण करना चाहिए! इसी प्रकार सूर्य पंचम अथवा नवम में होने पर भी इस रत्न को पहनने से सकारात्मक प्रभाव प्राप्त होता है. लग्न स्थान में सूर्य की स्थिति होने पर लग्न बलवान बनाने के लिए सूर्य का रत्न पहनना चाहिए! अगर सूर्य शुभ नही हो तो माणिक्य धारण करने से सकारात्मक प्रभाव नहीं मिल पाता है!

चन्द्र रत्न मोती---
चन्द्रमा का रत्न मोती है.ज्योतिषीय के अनुसार कुण्डली में चन्द्रमा शुभ भावों में बैठा हो तभी मोती पहनना चाहिए, इससे चन्द्रमा उत्तम फल देता है!.मोती धारण करने के संदर्भ में अगर कुण्डली में चन्द्रमा द्वितीय भाव का स्वामी हो तो इस रत्न को धारण करना चाहिए.इसी प्रकार पंचमेश होकर द्वादश भाव में स्थित हो तो मोती पहनना चाहिए.वृश्चिक राशि वालों की कुण्डली में चन्द्रमा किसी भी भाव में हो मोती धारण करना लाभप्रद होता है! चन्द्रमा की अन्तर्दशा में चन्द्र रत्न मोती धारण करना शुभ होता है! जिस व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्रमा पर पाप ग्रह राहु केतु अथवा मंगल की दृष्टि हो उनके लिए मोती बहुत ही लाभप्रद होता है!.

मंगल रत्न मूंगा--
इस रत्न को तब धारण करना चाहिए जबकि कुण्डली में मंगल शुभ भाव का स्वामी हो कर स्थित हो.इस स्थिति में मंगल की शुभता में वृद्धि होती है और व्यक्ति को लाभ मिलता है! ग्रहों के सेनापति मंगल का रत्न मूंगा है! अगर मंगल कुण्डली में अस्त अथवा पीड़ित हो तब भी मूंगा धारण करना शुभ होता है!.मंगल की इस दशा मे मूंगा धारण करने से इसके अशुभ प्रभाव में कमी मूंगा बहुत ही लाभप्रद होता है!

बुध रत्न पन्ना--
ग्रहों में राजकुमार बुध का रत्न है पन्ना ! बुध का रंग हरा है! बुध बुद्धि का स्वामी. है,इस ग्रह का रत्न तब धारण करना चाहिए जब कुण्डली में बुध शुभ भाव का स्वामी हो!.अगर बुध अशुभ स्थिति में हो तो इसका रत्न धारण करने से इसके अशुभ प्रभाव में और वृद्धि होती है.

गुरू रत्न पुखराज--
पीत रंग बृहस्पति का प्रिय है! ग्रहों के गुरू बृहस्पति हैं! .इनका रत्न पुखराज भी पीत रंग का होता है! : जिन ग्रहों एवं भावों पर गुरू की दृष्टि होती है वह भी विशेष शुभ फलदायी हो जाते है!..व्यक्ति की कुण्डली में गुरू अगर शुभ भावों का स्वामी हो अथवा मजबूत स्थिति में हो तो पुखराज धारण करने से बृहस्पति जिस भाव में होता है उस भाव के शुभ प्रभाव में वृद्धि होती है!.यह रत्न धारण करने से गुरू के बल में वृद्धि होती है!

शुक्र रत्न हीरा--
शुक्र ग्रह का रत्न हीरा है! रत्नशास्त्र के अनुसार यह अत्यंत चमत्कारी रत्न होता है!.ज्यातिषशास्त्र और रत्नशास्त्र दोनों की ही यह मान्यता है कि कुण्डली में अगर शुक्र शुभ भाव का अधिपति है तो हीरा धारण करने से शुक्र के सकारात्मक प्रभाव में वृद्धि होती है शुक्र ग्रह प्रेम, सौन्दर्य, राग रंग, गायन वादन एवं विनोद का स्वामी है! शुक्र के रत्न को परखने के बाद ही धारण करना चाहिए!

शनि रत्न नीलम--
शनि को दंडाधिकारी एवं न्यायाधिपति का स्थान प्राप्त है.यह व्यक्ति को उनके कर्मो के अनुरूप फल प्रदान करते हैं! .इस ग्रह का रत्न नीलम हैं!.इस ग्रह की गति मंद होने से इसकी दशा लम्बी होती है.अपनी दशावधि में यह ग्रह व्यक्ति को कर्मों के अनुरूप फल देता है.इस ग्रह की पीड़ा अत्यंत कष्टकारी होती है.यह ग्रह अगर मजबूत और शुभ हो तो जीवन की हर मुश्किल आसन हो जाती है!नीलम उस स्थिति में धारण करना चाहिए जबकि जन्म कुण्डली में शनि शुभ भावों में बैठा हो. अशुभ शनि होने पर नीलम धारण करने से सकारात्मक परिणाम नहीं मिलता !

राहु रत्न गोमेद--
राहु ग्रह को नैसर्गिक पाप ग्रह कहा गया है! .इस ग्रह का रत्न गोमद है!.राहु बने बनाये कार्यो को नष्ट करने वाला है.प्रगति के मार्ग में अवरोध है.स्वास्थ्य सम्बन्धी पीड़ा देने वाला है! राहु को प्रकट ग्रह के रूप में मान्यता प्राप्त नही है!.यह ग्रह मंडल में छाया ग्रह है! इसे गोमेदक के नाम से भी जाना जाता है!.यह धुएं के रंग का होता है.अगर जन्मपत्री में राहु प्रथम, चतुर्थ, पंचम, नवम अथवा दशम भाव में हो तो गोमेद धारण करने से इस भाव के शुभ प्रभाव में वृद्धि होती है एवं राहु शुभ परिणाम देता है! गोमेद धारण उस स्थिति में नहीं करना चाहिए जब राहु जन्मपत्री में द्वितीय, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में हो!.गोमेद के साथ मूंगा, माणिक्य, मोती अथवा पुखराज नहीं पहनना चाहिए।

केतु रत्न लहसुनियां--
केतु भी राहु के सामन ही क्रूर,छाया ग्रह एवं नैसर्गिक पाप ग्रह है!.पाप ग्रह होते हुए भी कुछ भावों एवं ग्रहों के साथ केतु अशुभ परिणाम नहीं देता है!.अगर कुण्डली में यह ग्रह शुभस्थ भाव में हो तो इस ग्रह का रत्न लहसुनियां धारण करने से स्वास्थ लाभ मिलता है!..राहु के सामन ही अगर जन्म पत्री में केतु लग्न, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्ठम, नवम अथवा एकादश में हो तो केतु का रत्न धारण करना चाहिए.अन्य भाव में केतु होने पर लहसुनियां (Cat’s Eye Stone – Lahasuniya) विपरीत प्रभाव देता है.लहसुनियां के साथ मोती, माणिक्य, मूंगा अथवा पुखराज नहीं पहनना चाहिए! लहसुनियां धारण करने से कार्यो में सफलता मिलती है.धन की प्राप्ति, रहस्यमयी शक्ति से सुरक्षित रहते हैं!

रत्न धारण में सावधानियां--
रत्नों के नाकारात्मक फल का सामना नहीं करना पड़े इसके लिए रत्नों को धारण करने से पहले कुछ सावधानियों का भी ध्यान रखना जरूरी होता है! जिन दो ग्रहों के बीच मुकाबला हो उनमें एक ग्रह का रत्न ही धारण करना चाहिए अन्यथा शुभ परिणाम की जगह अशुभ परिणाम प्राप्त होने लगता है। जो ग्रह कुण्डली में धर्मी हो उस ग्रह का रत्न धारण किया जा सकता है, लेकिन अगर कोई ग्रह धर्मी ग्रह के मुकाबले का ग्रह हो तो मुकाबले के ग्रह का रत्न धर्मी ग्रह के रत्न के साथ नहीं धारण करना चाहिए। अगर जन्मदिन और जन्म समय का ग्रह एक हो तो उस ग्रह का रत्न जरूर पहनना चाहिए यह हमेशा लाभ देता है।। रत्न शुभ फल देने की शक्ति रखता है तो अशुभ फल देने की भी इसमें ताकत है! परस्पर मुकाबले वाले ग्रहों का रत्न धारण नहीं करना चाहिए।

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