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Dr. Yogesh Vyas

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ज्योतिष से जानिए प्रॉपर्टी और घर

आज के समय में हर कोई व्यक्ति अपने लिए एक अच्छा घर बनाना चाहता है लेकिन, कुछ ज्योतिषीय कारणों से सबके लिए ऐसा करना संभव नहीं होता। यही वजह है कि कुछ लोग बड़ी आसानी से अपने जीवन में एक से ज्यादा घर और बंगले बना लेते हैं और कुछ लोग जीवन भर काफी प्रयास करने के बाद भी अपना छोटा सा घर नहीं बना पाते। यदि भवन वास्तु दोष युक्त हो और भाग्य भी निर्बल हो तो उसमें रहने वाला व्यक्ति दुःखी, अशान्त हो सकता है।
किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली में मंगल एवं शनि ग्रह भूमि एवं भवन के विशेष कारक ग्रह माने जाते हैं इसलिए इन ग्रहों को मजबूत बनाने के लिए व्यक्ति को अपने पूजा घर में मंगल एवं शनि ग्रह के हस्त निर्मित वैदिक यंत्र की अवश्य स्थापना करके उनकी प्रतिदिन पूजा करनी चाहिए। इससे जातक के भूमि एवं भवन के योग बनने में बेहद आसानी हो जाती है। गृह निर्माण के लिए कुंडली से संबंधित ज्योतिषीय योगों और ग्रहों के विषय में आइए विस्तार से जानते हैं।

कुण्डली में भवन प्राप्ति योग-
● भूमि का कारक ग्रह मंगल है और कुण्डली में चौथा भाव भूमि एवं भवन से सम्बन्ध रखता है। जन्मपत्री में मंगल की स्थिति भी सुदृढ़ होनी चाहिए। उत्तम भवन की प्राप्ति के लिए चतुर्थेश का केन्द्र-त्रिकोण में स्थित होना अच्छा माना जाता है।
● यदि चतुर्थेश उच्च, मूल त्रिकोण, स्वग्रही, उच्चाभिलाषी, मित्रक्षेत्री, शुभ ग्रहों से युत या दृष्ट हो तो निश्चित रूप से भवन का सुख मिलता है। यदि शनि- राहु या केतु के साथ मंदा या नीच हो तो राहु-केतु के कारण बने बनाये मकान बिक सकते है !
● कुण्डली में चतुर्थेश लग्न में हो और लग्नेश चौथे भाव में हो तो ऐसा व्यक्ति स्व पराक्रम व पुरुषार्थ से अपना घर बनाता है। कुण्डली में चतुर्थेश किसी शुभ ग्रह के साथ युति करके केन्द्र-त्रिकोण में हो तो ऐसे व्यक्ति को भी स्वश्रम से निर्मित उत्तम सुख-सुविधाओं से युक्त भवन प्राप्त होता है।
● चौथे भाव पर शुभाशुभ ग्रहों की दृष्टि, युति व प्रभाव का भी विश्लेषण करना आवश्यक होता है ! चौथे भाव व चतुर्थेश का बली होना आवश्यक है तो लग्न व लग्नेश का सुदृढ़ होना और साथ में दशमेश, नवमेश व लाभेश का सहयोग भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।
● जब कुंडली के चौथे भाव एवं 11वें भाव के बीच कोई विशेष रूप से शुभ संबंध बनता है तो व्यक्ति के एक से अधिक मकान या बंगले होने की भी संभावना बन जाती है। ऐसा व्यक्ति प्रॉपर्टी के क्रय विक्रय के माध्यम से भी अपने जीवन में काफी धन लाभ कमाता है।
● इसी प्रकार से चतुर्थ भाव में बली शुक्र एवं चंद्रमा की स्थिति भी व्यक्ति को एक से ज्यादा घर प्रदान करने में सक्षम होती है और ऐसा घर भौतिक सुखों से पूर्ण भी होता है।
● इसी प्रकार से जब चतुर्थ भाव के स्वामी का मजबूत और शुभ संबंध 12वें भाव से बनता है तो ऐसा जातक अपने जन्म स्थान से काफी दूर जाकर घर बनाता है या फिर कई बार मजबूत और शुभ संबंध बनने के कारण वह व्यक्ति अपने देश को छोड़कर विदेश में भी जाकर घर बनाकर रहने लग जाता है।
● जन्मकुण्डली में चतुर्थेश एवं दशमेश, चन्द्रमा और शनि से युत हो तो ऐसे व्यक्ति का भवन दूजों से अलग, सुन्दर, आकर्षक एवं साज-सज्जा से युक्त होता है।
● जब कुंडली के चतुर्थ भाव एवं एकादश भाव में मजबूत एवं शुभ संबंध बनता है तो उस जातक को ससुराल पक्ष से या फिर विरासत के माध्यम से घर मिलने के अच्छे योग बन जाते हैं।
● कुण्डली में चतुर्थेश चर राशि (मेष, कर्क, तुला, मकर) में और शुभ ग्रहों से युत या दृष्ट हो तो ऐसा व्यक्ति अनेक भवनों में रहता है और उसे अनेक भवन बदलने पड़ते हैं। यदि चर की जगह स्थिर राशि (वृष, सिंह, वृश्चिक, कुंभ) हो तो व्यक्ति के पास स्थायी भवन होते हैं।
● कुण्डली में चतुर्थेश यदि दसवें भाव के स्वामी के साथ केन्द्र-त्रिकोण में हो तो ऐसे व्यक्ति को सुख-सुविधाओं से युक्त कोठी प्राप्त होती है। चौथे भाव में चन्द्र और शुक्र की युति हो या चौथे भाव में कोई उच्च राशिगत ग्रह हो, चौथे भाव का स्वामी केन्द्र-त्रिकोण में हो तो ऐसे व्यक्ति के पास अपना बंगला होता है जिसमें बगीचा व जलाशय होता है।
● कुण्डली में चतुर्थेश दसवें भाव में और दशमेश चौथे भाव में हो तथा मंगल ग्रह बली हो तो व्यक्ति भूपति होता है। कुण्डली में चतुर्थेश स्वराशि का 10-11वें भाव में हो और शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो ऐसा व्यक्ति बहुत भूमि का स्वामी होता है।
● कुण्डली में चतुर्थेश उच्च, मूलत्रिकोण या स्वराशि में हो तथा नौवें भाव का स्वामी केन्द्र में हो तो ऐसे जातक को थोड़े प्रयास में ही भवन प्राप्ति हो जाती है। कुण्डली में चतुर्थेश एवं लग्नेश चौथे भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति को अचानक भवन की प्राप्ति होती है जोकि दूजों द्वारा निर्मित होता है।
● कुण्डली में शुक्र चौथे भाव में और चौथे भाव का स्वामी सातवें भाव में स्थित हो और ये दोनों परस्पर मित्र हों तो ऐसे व्यक्ति को पत्नी या स्त्री के द्वारा भूमि प्राप्त होती है।
● कुण्डली में चतुर्थेश बारहवें या आठवें भाव में होकर पाप ग्रहों से युत या दृष्ट हो तो ऐसे व्यक्ति की सम्पत्ति व भवन नष्ट हो सकता है। उसका भवन सम्बन्धी, किरायेदार या शत्रु द्वारा हड़प जा सकता है या प्राकृतिक आपदा से नष्ट हो हो सकता है। चतुर्थेश का जाप, वैदिक यंत्र या रत्न धारण करने से इस हानि से बचा जा सकता है।
● शीघ्र घर मिलने के उपाय- यदि किसी कारणवश आप अपना मकान नहीं बनवा पा रहे हैं या नया मकान नहीं खरीद पा रहे है, तो नीम की लकड़ी का एक छोटा सा घर बनवाकर किसी गरीब बच्चे को दान कर दें या किसी मंदिर में रख आएं। प्रयास पूरी ईमानदारी से करें ऐसा करने पर शीघ्र ही आपको घर मिलने के योग बनेंगे।
● मनुष्य अपने भाग्य को तो बदल नहीं सकता परन्तु लेकिन हस्त निर्मित वैदिक यंत्रों को स्थापित करके एवं शुभ ग्रहों के मंत्रों के जाप द्वारा और शुभ ग्रहों के रत्नों को धारण करने से सफलता के करीब अवश्य पहुंच सकता है।
■ ज्योतिष फलदायक न होकर फल सूचक है ! किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले किसी योग्य ज्योतिर्विद से संपूर्ण कुंडली के परामर्श करने के बाद ही किसी सार्थक निर्णय पर पहुंचना उचित माना जाता है।

Website- www.astrologeryogesh.com
डॉ योगेश व्यास, ज्योतिषाचार्य (टॉपर),
नेट (साहित्य एवं ज्योतिष), पीएच.डी (ज्योतिषशास्त्र)
Contact for Astrology and Vastu- 8696743637, 8058169959

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