ज्योतिष और व्यावसायिक शिक्षा
आज शिक्षा का क्षेत्र काफी विस्तृत हो गया है और बदलते हुए जीवन के मूल्यों के साथ ही अब शिक्षा व्यवसाय से
जुड़कर के व्यावसायिक शिक्षा का रूप ले रही है। ज्यादातर विद्यार्थी अब व्यवसाय करने के उद्देश्य से
व्यावसायिक शिक्षा में रुचि भी लेने लगे हैं। बच्चे के व्यावसायिक भविष्य को उज्जवल बनाने की दृष्टि से उसकी
पढ़ाई के समय उसके विषय का चयन करना अब बेहद महत्वपूर्ण हो गया है। हम बच्चों की जन्म कुंडली से यह
जान सकते हैं कि वह बच्चा कोनसे विषय का चयन करे कि उसका भविष्य उन्नत व सुखमय हो और आगे
चलकर उस बच्चे का चयन किया हुआ विषय जीवन भर उसकी आजीविका प्रति में उसका सहायक बन सके। कई
बार देखने में आता है कि बच्चा शिक्षा तो कोई और ग्रहण करता है और आगे चलकर जीवन में व्यवसाय कुछ और
ही करने लग जाता है। ज्योतिष के सिद्धांतों के आधार पर विषयों का चयन उस बच्चे के व्यवसाय में उपयोगी
सिद्ध हो सकता है। जातक की कुंडली उसके विषय के माध्यम से करियर के चयन में काफी सहायक से होती है।
व्यावसायिक शिक्षा का आकलन करने के लिए शिक्षा से जुड़े भावों का आकलन करना बेहद आवश्यक होता है।
ज्योतिष शास्त्र में बुध ग्रह को बुद्धि का कारक ग्रह एवं गुरु ग्रह को ज्ञान का कारक माना जाता है। कुंडली में बुध
ग्रह के साथ ही गुरु ग्रह की भी मजबूत स्थिति बच्चे की व्यावसायिक शिक्षा में बेहद सहायक होती है। जब बुध
और गुरु ग्रह बली होकर केंद्र अथवा त्रिकोण में युति करते हैं या केंद्रेश या त्रिकोणेश के साथ में स्थित होते हैं तो
निश्चित ही बच्चे की व्यावसायिक शिक्षा और उसके व्यवसाय में शुभ फल देते हैं। शिक्षा एवं व्यवसाय की सटीक
जानकारी के लिए बच्चे की नवांश कुंडली का भी अध्ययन करना आवश्यक होता है। कुंडली के दूसरे, चतुर्थ एवं
पंचम भाव से शिक्षा का प्रत्यक्ष रूप से संबंध स्थापित किया गया है, आइए इन भावों को जानते हैं।
द्वितीय भाव- बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा के बारे में द्वितीय भाव की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कुछ बच्चों में
व्यावसायिक शिक्षा के प्रति लगाव बचपन से ही देखने को मिलता है। बच्चों की शुरुआती शिक्षा का स्तर और
उसके संस्कारों को दूसरे भाव से जाना जा सकता है। यदि द्वितीय भाव पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो और द्वितीयेश
भी कमजोर अवस्था में हो तो वह बच्चा अपने परिवार से मिली शिक्षा और संस्कारों का अपने जीवन में बहुत
ज्यादा और सही तरीके से उपयोग नहीं कर पाता। जब द्वितीय भाव में शुभ ग्रह हों और द्वितीयेश भी बली होकर
केंद्र या त्रिकोण में हो तो बच्चे की शिक्षा और घर से मिले संस्कारों को लेकर अक्सर शुभ परिणाम ही देखने को
मिलते हैं। जन्म कुंडली का द्वितीय भाव धन संचय एवं व्यक्ति की मानसिक स्थिति के साथ ही कुटुंब और वाणी
को भी दर्शाता है। दूसरे भाव से परिवार से मिली शिक्षा और संस्कारों को भी देखना चाहिए।
चतुर्थ भाव- कुंडली का चौथा भाव भूमि, भवन, वाहन, सुख, शांति व समृद्धि के साथ ही जातक के मां का भाव
भी माना जाता है। स्कूल की पढ़ाई का स्तर और बच्चे का विषय चुनने में विशेष मार्गदर्शन इस चौथे भाव से
देखना चाहिए। चतुर्थ भाव को बच्चों की व्यावसायिक शिक्षा की नींव का आरंभ माना जा सकता है और उसी पर
बच्चे की भविष्य की संपूर्ण आजीविका टिकी रहती है। जब भी चतुर्थ भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवे भाव
में कमजोर होकर स्थित हो, अस्त हो या नीच का हो या अन्य किसी माध्यम से पीड़ित होगा तो बच्चे का मन
अक्सर पढ़ाई में नहीं लगेगा। कुंडली का चतुर्थ भाव शुभ ग्रहों से युक्त होगा और चतुर्थेश भी बली होकर शुभ भाव
में बैठा होगा तो बच्चे का पढ़ाई में मन भी लगेगा और उस पढ़ाई के आजीविका को लेकर भविष्य में
परिणाम भी सुखद ही देखने को मिलेंगे । चतुर्थ भाव में बने खराब योगों के एवं कमजोर चतुर्थेश ग्रह के हस्त
निर्मित वैदिक यंत्र की अवश्य ही स्थापना करके उसकी पूजा करनी चाहिए।
पंचम भाव- कुंडली के पंचम भाव को व्यावसायिक शिक्षा में सबसे महत्वपूर्ण भाव माना जाता है। इस भाव से
मिलने वाली व्यावसायिक शिक्षा बच्चे की आजीविका में बेहद सहयोगी होती है। पंचम भाव व्यावसायिक शिक्षा
के स्तर को भी तय करता है। कुंडली के इस पंचम भाव से ज्ञान, कल्पना, बुद्धि, रचनात्मक कार्य, याददाश्त व
पूर्व जन्म के संचित कर्मों को भी देखा जाता है। ऐसी शिक्षा जो भविष्य में नौकरी करने या व्यवसाय करने के लिए
बेहद उपयोगी होती है तो उस व्यावसायिक शिक्षा का विश्लेषण पंचम भाव से ही किया जाता है। पंचम भाव और
पंचमेश जब कमजोर और पाप ग्रहों के प्रभाव से दूषित होते हैं तो निश्चित ही व्यावसायिक शिक्षा के उच्च स्तर में
कमी करते हैं इसलिए, व्यावसायिक शिक्षा में उपलब्धि हासिल करने के लिए पंचमेश के ग्रह का वैदिक यंत्र
लगाकर उस ग्रह के जाप करने चाहिए।
■ ज्योतिष फलदायक न होकर फल सूचक है ! किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले किसी योग्य ज्योतिर्विद से
संपूर्ण कुंडली के परामर्श करने के बाद ही किसी सार्थक निर्णय पर पहुंचना उचित माना जाता है।
Website- www.astrologeryogesh.com
डॉ योगेश व्यास, ज्योतिषाचार्य (टॉपर),
नेट (साहित्य एवं ज्योतिष), पीएच.डी (ज्योतिषशास्त्र)
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