Contact Me

Dr. Yogesh Vyas

Mobile: +91 8696743637, 918058169959
Email: aacharyayogesh@gmail.com

Types Of Services Provided By Dr. Yogesh Vyas in Jaipur, Rajsthan

1. Astrology for business
2. Love marriage problem solution astrology
3. Astrology Services for marriage
4. Financial Services Astrology
5. Problems in marriage astrology
6. Husband-wife problem solution by astrology
7. Career prediction astrology
8. Astrology for job
9. Astrology for health
10. Astrology for education
11. Financial problem Astrology Solution
12. Vastu Services
13. Jyotish Services
14. Vastu Yantras
15. Jyotish Yantras

Education

शिक्षा का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत हो गया हैं और बदलते हुए जीवन-मूल्यों के साथ-साथ शिक्षा व्यवसाय से जुड़ गई हैं और छात्र-छात्राएं व्यवसाय की तैयारी के रूप में ही इसे ग्रहण करते है। उनके लिए व्यवसायिक भविष्य को उज्ज्वल बनाने की दृष्टि से विषय का चयन करना अत्यन्त समस्यापूर्ण हो गया हैं। सबसे बड़ी समस्या यही होती हैं कि कौनसा विषय पढ़ें जिससे भविष्य सुखमय हो। आज अच्छी आजीविका पाने के लिए अच्छी शिक्षा ग्रहण करना आवश्यक समझा जाता है ! जबकि विद्यार्थियों को उनकी क्षमतानुसार तथा उनकी मानसिकता के अनुसार शिक्षा प्राप्त करानी चाहिए, जो आगे चलकर उनके आजीविका प्राप्ति में सहायक सिद्ध हो सके ! ज्योतिष सिद्धान्तों के आधार पर लिया गया निष्कर्ष विषय एवं व्यवसाय के चयन में उपयोगी सिद्ध हो सकता हैं। ज्योतिष के आधार पर बच्चे की शिक्षा के क्षेत्र में सहायता की जा सकती है ! शिक्षा का आंकलन करने के लिए शिक्षा से जुडे़ भावों का आंकलन करना आवश्यक है ! कुण्डली के दूसरे, चतुर्थ तथा पंचम भाव से शिक्षा का प्रत्यक्ष रुप में संबंध होता है !

● द्वित्तीय भाव- इस भाव को कुटुम्ब भाव भी कहते हैं ! बच्चा पांच वर्ष तक के सभी संस्कार अपने कुटुम्ब से पाता है ! इसलिए दूसरे भाव से परिवार से मिली शिक्षा अथवा संस्कारों का पता चलता है ! बच्चे की प्रारम्भिक शिक्षा के बारे में इस भाव की मुख्य भूमिका है ! इस प्रकार बच्चे की एकदम से आरंभिक शिक्षा का स्तर तथा संस्कार दूसरे भाव से देखे जाते हैं !
● चतुर्थ भाव- चौथा भाव कुण्डली का सुख भाव भी कहलाता है ! आरम्भिक शिक्षा के बाद स्कूल की पढा़ई का स्तर इस भाव से देखा जाता है ! चतुर्थ भाव से उस शिक्षा की नींव का आरम्भ माना जाता है, जिस पर भविष्य की आजीविका टिकी होती है !अक्षर के ज्ञान से लेकर स्कूल तक की शिक्षा का आंकलन इस भाव से किया जाता है !
● पंचम भाव- पंचम भाव को शिक्षा में सबसे महत्वपूर्ण भाव माना गया है ! इस भाव से मिलने वाली शिक्षा आजीविका में सहयोगी होती है ! वह शिक्षा जो नौकरी करने या व्यवसाय करने के लिए उपयोगी मानी जाती है, उसका विश्लेषण पंचम भाव से किया जाता है ! आजीविका के विषय में सही विषयों के चुनाव में यह भाव महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है !
● जातक के बचपन से ही उसकी कुण्डली विषय की पढाई व केरियर चयन में सहायक होती हैं । जातक की कुण्डली से तय करना चाहिए कि वह नौकरी करेगा या व्यवसाय ।
● जन्म कुण्डली का पंचम भाव बुद्धि, ज्ञान, कल्पना, अतिन्द्रिय ज्ञान, रचनात्मक कार्य, याददाश्त व पूर्व जन्म के संचित कर्म को दर्शाता हैं । यह शिक्षा के संकाय का स्तर तय करता हैं।
● जन्म कुण्डली का चतुर्थ भाव मन का भाव हैं । जब भी चतुर्थ भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में गया हो या नीच राशि, अस्त राशि, शत्रुराशि में बैठा हो व चन्द्रमा पीड़ित हो तो शिक्षा में मन नहीं लगता हैं ।
● जनम कुण्डली का द्वितीय भाव वाणी, धन संचय, व्यक्ति की मानसिक स्थिति को व्यक्त करता हैं ! यदि इस भाव पर पाप ग्रह का प्रभाव हो तो व्यक्ति शिक्षा का उपयोग नहीं करता हैं ।
● शिक्षा प्रदान करने वाले ग्रह- बुध ग्रह को बुद्धि का कारक ग्रह और गुरु ग्रह को ज्ञान का कारक ग्रह माना गया है ! बच्चे की कुण्डली में बुध तथा गुरु दोनों अच्छी स्थिति में है तब शिक्षा का स्तर भी अच्छा होगा ! इन दोनों ग्रहों का संबंध केन्द्र या त्रिकोण भाव से है तब भी शिक्षा का स्तर अच्छा होगा ! विभिन्न ग्रहों के शिक्षा सम्बन्धी प्रतिनिधित्व के आधार पर ग्रहों की उपरोक्त भावों में स्थिति को देखकर जातक के लिए उपयुक्त विषय का चयन किया जा सकता हैं--
● सूर्य: – चिकित्सा, शरीर विज्ञान, प्राणीशास्त्र, नेत्र-चिकित्सा, राजभाषा, प्रशासन, राजनीति, जीव विज्ञान।
● चन्द्र: – नर्सिंग, नाविक शिक्षा, वनस्पति विज्ञान, जंतु विज्ञान (जूलोजी), होटल प्रबन्धन, काव्य, पत्रकारिता, पर्यटन, डेयरी विज्ञान, जलदाय
● मंगल: – भूमिति, फौजदारी, कानून, इतिहासस, पुलिस सम्बन्धी प्रशिक्षण, ओवर-सियर प्रशिक्षण, सर्वे अभियांत्रिकी, वायुयान शिक्षा, शल्य चिकित्सा, विज्ञान, ड्राइविंग, टेलरिंग या अन्य तकनीकी शिक्षा, खेल कूद सम्बन्धी प्रशिक्षण , सैनिक शिक्षा, दंत चिकित्सा
● गुरू: – बीजगणित, द्वितीय भाषा, आरोग्यशास्त्र, विविध, अर्थशास्त्र, दर्शन, मनोविज्ञान, धार्मिक या आध्यात्मिक शिक्षा।
● बुध: – गणित, ज्योतिष, व्याकरण, शासन की विभागीय परीक्षाएं, पर्दाथ विज्ञान, मानसशास्त्र, हस्तरेखा ज्ञान, शब्दशास्त्र (भाषा विज्ञान), टाइपिंग, तत्व ज्ञान, पुस्तकालय विज्ञान, लेखा, वाणिज्य, शिक्षक प्रशिक्षण।
● शुक्र: – ललितकला (संगीत, नृत्य, अभिनय, चित्रकला आदि), फिल्म, टी0वी0, वेशभूषा, फैशन डिजायनिंग, काव्य साहित्य एवं अन्य विविध कलाएं।
● शनि: –भूगर्भशास्त्र, सर्वेक्षण, अभियांत्रिकी, औद्योगिकी, यांत्रिकी, भवन निर्माण, मुद्रण कला (प्रिन्टिंग)।
● राहु: – तर्कशास्त्र, हिप्नोटिजम, मेस्मेरिजम, करतब के खेल (जादू, सर्कस आदि), भूत-प्रेत सम्बन्धी ज्ञान, विष चिकित्सा, एन्टी बायोटिक्स, इलेक्ट्रोनिक्स।
● केतु: – गुप्त विद्याएं, मंत्र-तंत्र सम्बन्धी ज्ञान।



>